Tuesday, January 3, 2012

बचा रहता है इंतजार...


सब कुछ खत्म होने के बाद भी
बची रहती है धूप के भीतर की नमी
पत्थरों के भीतर की हरारत
रेत के भीतर
उग ही आता है कोई समंदर
आग की आंखों में
छलक उठते हैं दो आंसू
बंजर धरती पर उगती हैं उम्मीदें
सब कुछ खत्म होने के बाद भी
बचा रहता है इंतजार...

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मेरी हथेली पर एक सूर्य रखा था
उँगलियों पर तारों का था ठिकाना
हथेली के ठीक आखिरी कोने पर
चाँद ने जमाया था डेरा,
अपनी हथेली पर जमा करके
समूचा आसमान
निकल पड़ी हूँ धरती की तलाश में
किसी कैलेण्डर के किसी कोने में
नहीं टंका है धरती से आसमान का मिलन
बस हथेली को उलटकर
आसमान गिराने भर की देर है
न जाने किसने थामा है मेरी हथेलियों को...
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13 comments:

पद्म सिंह said...

सुंदर ....

प्रवीण पाण्डेय said...

आस बची कुछ रहती है,
मन का वीराना सहती है।

vandana gupta said...

दोनो ही रचनायें शानदार्।

***Punam*** said...

बंजर धरती पर उगती हैं उम्मीदें
सब कुछ खत्म होने के बाद भी
बचा रहता है इंतजार...
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बस हथेली को उलटकर
आसमान गिराने भर की देर है
न जाने किसने थामा है मेरी हथेलियों को...
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दोनों ही रचनाएं खूबसूरत हैं.......
दोनों रचनाओं से ली गई कुछ पंक्तियों के माध्यम से अपने भावों को दिखाने की नाकाम कोशिश कर रही हूँ...क्यूँ कि भाव छूटते से हैं लेकिन मजबूरी है...क्या करूँ...?
कई बार पढ़ गई....लेकिन हथेलियाँ रीती की रीती ही हैं....मन करता है कि जिसने थामी है ये हथेली छोड़ दे और आसमान धम्म से मेरी हथेली पर गिर जाए....!!
आगे कुछ भी नहीं...कुछ कहना भी नहीं...

Pratibha Katiyar said...

@ Punam-बहुत शुक्रिया पूनम जी. बस यूँ ही हाथ थामे रहिये की दिल कुछ खाली हो सके...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

अत्यंत खुबसूरत रचना...
सादर बधाई.

संध्या शर्मा said...

नहीं टंका है धरती से आसमान का मिलन
बस हथेली को उलटकर
आसमान गिराने भर की देर है
न जाने किसने थामा है मेरी हथेलियों को...

कमाल कर दिया इन पंक्तियों ने ...पलट जाये ये हथेलियाँ औरहो जाये धरती से आसमान का मिलन... सुन्दर भाव

आनंद said...

उग ही आता है कोई समंदर
आग की आंखों में
छलक उठते हैं दो आंसू
बंजर धरती पर उगती हैं उम्मीदें
सब कुछ खत्म होने के बाद भी
बचा रहता है इंतजार...
....
कुछ बातें भगवान के बस में भी नहीं होती ...जैसे कि इसी इंतज़ार को ही ले लो !

आनंद said...

बस हथेली को उलटकर
आसमान गिराने भर की देर है
न जाने किसने थामा है मेरी हथेलियों को...
.....
जिसने भी थाम रखा है हथेलियों को उसे बखूबी मालूम है कि उसने शायद प्रलय को होने से रोक रखा है...

सदा said...

बेहतरीन भाव संयोजन ।

Anju (Anu) Chaudhary said...

बहुत खूब ...शानदार


कुछ विचार मेरे भी
क्यों मै खुद को अकेली मानूँ...मै तो खुद में
परिपूर्ण हूँ ....खुद की विचारो की आंधियो में
खुद से चरपरिचित...

हां फिसलती हैं धूप..मेरी हथेलियों से
फिर भी एक पूर्ण जहान की मैं ही मालिक हूँ ....अनु

amrendra "amar" said...

behtreen bhav ke saath behtren prastuti.......

दीपिका रानी said...

खूबसूरत