वो छुटपन के दिन थे जब शुभा जी को ब्लैक एंड व्हाइट टीवी पर सुना करती थी 'अली मोरे अंगना दरस दिखा'. घंटों झूमा करती थी. उनको सुनते हुए बड़ी हुई. क्या ख़बर थी एक एक रोज मेरी अनगढ़ सी लिखाई उनकी आवाज़ में ढलकर लौटेगी.
उन्होंने और अनीश जी ने जब 'ओ अच्छी लड़कियों' कविता को संगीतबध्ध किया था तब भी मन भावुक था. गोवा की वो शाम जब उनकी हथेलियों को अपनी हथेलियों में थामे 'ओ अच्छी लड़कियों' को मंच पर देख रही थी.
इस बार जब दिल्ली में उदयोत्सव में उन्होंने मेरी एक दूसरी कविता 'इन दिनों अच्छी लगने वाली चीज़े मुझे अच्छी नहीं लगतीं को अपनी आवाज़ दी तो मैं वहां नहीं थी लेकिन ख़्वाहिश थी वहां और देवयानी थी.
आज यह रिकॉर्डिंग आप सबसे साझा कर रही हूँ. अपने लिखे को लेकर संकोच के साथ और शुभा जी की गायकी को लेकर गर्व के साथ.
अपने लिखे को इस तरह सुनना कितना सुंदर है जैसे ये किसी और की लिखावट हो.
शुक्रिया शुभा जी!
https://drive.google.com/file/d/1mQonG8EX6893CE7BBvzFm5a4dgeiJ3xf/view
1 comment:
उम्दा!
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