Friday, February 19, 2021

और अंत में अंतिमा


जैसे मुझे पता था कि वहां पहुँचते ही सब खत्म हो जायेगा. इसलिए मैं उस जगह से बस कुछ कदम दूर पर ही रुक गयी. यह रुकना फिर देर तक रुके रहना बनता गया. मैंने इस तरह के सुख को कभी महसूस नहीं किया था. यह कित्ता बड़ा सुख था कि जहाँ पहुंचने की शदीद इच्छा है उस जगह के मुहाने पर पहुंचकर ठहरे हुए होना. आश्वस्ति यह कि बस दो कदम बढ़ाये और पहुँच गए. लेकिन उसके बाद क्या? उसके बाद फैला एक निर्जन सन्नाटा और कुछ उदासी कि अब इस तरह कुछ कदम बढ़ाकर पहुँचने की जगह कोई नहीं बची. इसी उहापोह में अंतिमा के अंत के दरवाजे पर खुद को रख दिया. बहुत सारे काम के सैलाब से गुजरते हुए अंतिमा को थामे रखना मानो सुख हो. एक रोज़ ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट पर भी पलट लिए कुछ पन्ने. लेकिन पढ़े नहीं.
 
फिर एक रोज़ रातरानी की खुशबू ने अंतिमा के पन्ने पलट दिए और मैं एक साँस में सब पढ़ गयी. जैसे चाय पीते हैं अंतिम घूँट. पीने का सुख और खत्म हो गयी की उदासी एक साथ महसूस करते हुए. आखिरी पन्ने के सामने बैठी ही थी कि कबूतर का जोड़ा घर में आ गया. मैंने चोरी से एक निगाह उन पर डाली और वापस पढ़ने लगी. रोहित, पवन, बंटी सबके चेहरे आपस में टकराने लगे. अब यह बंटी कहाँ से आ गया. यह तो दूर बहुत दूर बैठा था. अंतिमा मुझे शुरू से जानी पहचानी लग रही थी इसलिए उसने चौंकाया नहीं. किसी उपन्यास के खत्म होने के बाद खुद को एक असीम शांति से भरते हुए महसूस करती हूँ. उस शांति में चाय पीना सुख है. मैंने अंतिमा की ओर मुस्कुराकर देखा और चाय चढ़ा दी. मैंने तीन कप चाय क्यों चढ़ाई? एक मेरी, एक अंतिमा की और तीसरी कैथरीन की. आईने में देखा तो खुद के चेहरे में जंग हे का चेहरा उगता मालूम हुआ. वो जंग हे जिन्हें मैंने देखा नहीं. मुझे कुछ ही देर में लगा मैं जंग हे हूँ और मेरे सामने सोफे पर अंतिमा और कैथरीन खामोश बैठी हैं. कैथरीन का चेहरा कितना ज्यादा चमक रहा है और अंतिमा थोड़ी सी नींद में लग रही है. दोनों एक-दूसरे से बात करने की इच्छा में मौन से भर गयी हैं. अब टेबल पर तीन कप चाय है. और मैं वहां कहीं नहीं हूँ. जंग हे कहती हैं, ‘तुम दोनों बहुत प्यारी हो.’अंतिमा मुस्कुरा देती है जैसे कह रही हो कि वह जानती है कि वह खूबसूरत है. जबकि कैथरीन चुपचाप चाय की सिप लेते हुए अपने मौन में कहती है कि उसे इस बात से कुछ फर्क नहीं पड़ता. देर तक चुप्पी से थक कर जंग हे यू लर्न कविता पढने लगती हैं. मिसेज वर्मा किसी के ख्याल में नहीं हैं रोहित भी नहीं, पवन भी नहीं, दुष्यंत भी नहीं. अरु को समझ में नहीं आ रहा कि यह हो क्या रहा है तभी कबूतरों का जोड़ा फुर्र से उड़ जाता है. वो दिन में सुस्ताती रातरानी की बेल के पास बैठकर एक-दूसरे की गर्दन पर गर्दन रख देते हैं. उनकी गर्दन का चमकता नीला अंतिमा की ड्रेस के जैसा नीला है कैथरीन की आँखों के जैसा नीला और जंग हे की अंगूठी में जड़ें नीलम जैसा.
मैं 'अंतिमा‘ पढ़ चुकने के बाद उदास नहीं हूँ. क्योंकि अब मेरे हाथ में ‘चलता फिरता प्रेत है...’


3 comments:

ANHAD NAAD said...

वाह !

kuldeep thakur said...


जय मां हाटेशवरी.......

आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
21/02/2021 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......


अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत अच्छा आलेख।