कमल सिंह सुल्ताना-
मारीना के जीवन से गुजरना ठीक ऐसा है जैसे निर्जीव और शांत वन में अचनाक कोई सतरंगी सुर छेड़ दे । किशोर चौधरी जी से इस पुस्तक के विषय मे ज्ञात हुआ लेकिन मिलने पर किशोर जी ने बताया कि वह ये पुस्तक किसी को मुझसे पहले दे चुके है ।लेकिन मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि मैंने मारीना को महसूसा नही है । चाहे किशोर जी के रिव्यू हो या आप के और देवयानी जी के मारीना के जीवन पर लाइव सेशन हो । मैंने मारीना को जिया है । मारीना के दुःख को महसूसा है ।मारीना के प्रेम को अनुभूत किया है । मारीना को सुनते वक़्त जो मुझसे बन पड़ा वो लिख दिया । हालांकि ये केवल सुनी- सुनाई बातों पर आधारित है पुस्तक को दुर्भाग्य से न पढ़ पाया हूँ अब तक ।
प्रतिभा से होकर गुजरता हूँ एक तस्वीर आंखों में ठहर जाती है । मन अगर झरने लगे तो मारीना की तस्वीर बना देता है । प्रतिभा की इस पुस्तक को हालांकि मैं पढ़ नही पाया हूँ लेकिन फिर भी मुझे लगता है की इसे मैंने अनुभूत किया है । मारीना के विषय मे बताते समय प्रतिभा संवेदित दिखती हैं । उनका प्रेम छलक पड़ता है ।कभी-कभी तो प्रतिभा और मारीना एकमेक हो जाती हैं।
ओ मेरे प्यारे देश रूस
मत शर्मिंदा हो
हमारे नंगे पैर देखकर
परियां हमेशा नंगे पैर ही होती हैं
बूट पहनकर तो राक्षस आते हैं
जो भी नंगे पैर नहीं है
वह असहनीय है.
उस समय की यह कविता जब रूस अपने सबसे विकट समय से गुजर रहा था । मारीना भी खुद को इससे विलग नहीं रख पाती ।मारीना कविताएँ जीते हुए लिखती है वे चाहती है कि कविता का हर एक शब्द स्वेद से सींचकर लिखा जा सके । गहरी आत्मानुभूति व भयावह मनःस्थिति के बीच का ये दौर रहा होगा जब मारीना ये कविता लिख रही होंगी । ये कविता मारीना की जिजीविषा व संघर्ष दर्शाती है । मारीना विचलित नहीं दिखती।किसी भी छोर से देखकर मारीना के देश प्रेम पर सवाल नहीं उठाए जा सकते । मास्को में जन्म लेकर जब वे निर्वासन की पीड़ा भोग रही थी या यूं कहे की वे कविताओं के निकट जा रही थी ठीक उसी दौर के दौरान ।
मारीना जीवन को आत्मीय मानती है वह जीवन के विषय मे अक्सर ही प्रसन्नचित और आभारी प्रतीत होती है । अपनी हर प्रतीति का वे बेहद सौम्य और मनहर वर्णन भी करती है । वे लिखती है कि 'जीवन में मुझे मुलाकातें अच्छी नहीं लगतीं. माथे टकरा जाते हैं. जैसे दो दीवारें. मुलाकातें मेहराब होनी चाहिए.'- मारीना
एक अन्य जगह वे लिखती है कि ' हर वो जगह, जहाँ इंसान को इंसान के तौर पर नहीं देखा जाता, वर्गों नस्लों में बाँट कर देखा जाता है. मेरे लिए उसका कोई महत्व नहीं है " - मारीना
मारीना जीवन को आत्मीय मानती है वह जीवन के विषय मे अक्सर ही प्रसन्नचित और आभारी प्रतीत होती है । अपनी हर प्रतीति का वे बेहद सौम्य और मनहर वर्णन भी करती है । वे लिखती है कि 'जीवन में मुझे मुलाकातें अच्छी नहीं लगतीं. माथे टकरा जाते हैं. जैसे दो दीवारें. मुलाकातें मेहराब होनी चाहिए.'- मारीना
एक अन्य जगह वे लिखती है कि ' हर वो जगह, जहाँ इंसान को इंसान के तौर पर नहीं देखा जाता, वर्गों नस्लों में बाँट कर देखा जाता है. मेरे लिए उसका कोई महत्व नहीं है " - मारीना
मारीना का जीवन विषद अनुभूति का क्षेत्र है वो किसी दर्शन या साहित्य का क्षेत्र होने से कहीं पहले दुख व विषाद का साक्षात्कार है । मारीना के जीवनी में प्रतिभा लिखती है कि मारीना जब भुखमरी से अत्यंत क्षुब्ध थी । एक ऐसे समय से वह गुजर रही थी जब उसके पास उदर - पालन का भी सामर्थ्य नही था । वे कविताएँ नही त्यागती । वे अनवरत और अथक लिखती है । प्रतिभा बताती है कि मारीना की दशा इस कदर खराब थी कि वह अपनी दोनों पुत्रियों को इस आशा में अनाथ आश्रम छोड़ देती है कि कम से कम आश्रम में पर्याप्त भोजन तो प्राप्त होगा । लेकिन कुछ समय बाद मारीना अपनी एक पुत्री को स्वास्थ्य खराब होने से पुनः घर ले आती है किन्तु इसी बीच हृदय विदारक खबर मिलती हैं कि उसकी दूसरी पुत्री का निधन हो चुका है ।मारीना अपनी पुत्री के अंतिम संस्कार में भी सम्मिलित नहीं हो पाई क्योंकि उस समय उसकी दूसरी पुत्री तेज ज्वर से तप रही थी ।
तारों और गुलाबों की तरह
बड़ी होती जाती हैं कवितायें
सौन्दर्य की तरह वे होती हैं अवांछनीय
मुकुटों और प्रशस्तियों के बारे में
एक ही उत्तर है मेरे पास
कि मुझे क्योंकर मिलेंगे?
सोये होते हैं हम जब
अंगीठी के पास से
प्रकट होता है चार पंखुरियों वाला दिव्य अतिथि
ओ मेरी दुनिया, समझने की कोशिश कर
सपनों में अनावृत किये हैं गायक ने
तारों के नियम और सूत्र फूलों के
- 14 अगस्त1918
मारीना अपने पत्र व्यवहार में अक्सर खुल के बताती है वे लिखती हैं कि 'मैं अपनी भावनाओं के अंतिम छोर पर खड़ी हूं। न मुझे अब अंदर से कुछ महसूस होता है न बाहर से। अगर संक्षेप में कहूं तो मैं एक पुरानी घिस चुकी किसी स्वचालित मशीन के जैसी हो चुकी हूं। रोजमर्रा की जरूरतों की फेहरिस्त ने मेरे दिमाग को खत्म कर दिया है। मैं मेयुडन और विज्नोरी में एक आम गृहिणी की जिंदगी जी ही चुकी हूं। घर के सारे काम करना, अब भी वही कर रही हूं। घर के सारे काम जो मुझे आते हैं, मुझे नहीं आते हैं सब। जो मुझे एकदम पसंद नहीं। हर वक्त घर के कामों में, चिंताओं में उलझे रहना, सुबह से रात तक बस खटते रहना...मैं यह सब कर रही हूं। चाहते न चाहते...मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। बस जो काम मैं नहीं कर पा रही हूं वो यह कि मैं हफतों कुछ लिख नहीं पाती हूं....लेकिन कौन इसे जरूरी काम समझता है...कौन...'
- मारीना त्स्वेतायेवा की डायरी, 1931
नितांत एकांत और आत्मीयता मारीना में इस कदर थी कि वह हर एक विषय के विषय मे गहरा चिंतन और स्वतः संवाद पसन्द करती थी । वह किसी भी तरह से मुलाकातों से बचने का प्रयास करती है । मारीना साहित्य के विषय मे लिखती है कि ''जो बहुत पढ़ चुका है, वह सुखी नहीं रह सकता. क्योंकि सुख हमेशा चेतना से बाहर रहता है, सुख केवल अज्ञानता है. मैं अकेली खो जाती हूं, केवल पुस्तकों में, पुस्तकों पर...लोगों की अपेक्षा पुस्तकों से बहुत कुछ मिला है. मैं विचारों में सब कुछ अनुभव कर चुकी हूं, सब कुछ ले चुकी हूं. मेरी कल्पना हमेशा आगे-आगे चलती है. मैं अनखिले फूलों को खिला देख सकती हूं. मैं भद्दे तरीके से सुकुमार वस्तुओं से पेश आती हूं और ऐसा मैं अपनी इच्छा से नहीं करती, किये बिना रह भी नहीं सकती. '
- मारीना की डायरी से
ओह मारीना! कितना नुकसान होता है
आसमान का टूटकर गिरे तारों से
हम भरपाई नहीं कर सकते उसकी
चाहे जहां दौड़ें उनमें बढ़ोत्तरी के लिए
जोड़ के किस तारे की तरफ जाएं
सभी की तो गिनती हो चुकी है पहले से ही
वह भी नहीं कर सकता भरपाई
जो गिराता है उस पवित्र तारे को...
बड़ी होती जाती हैं कवितायें
सौन्दर्य की तरह वे होती हैं अवांछनीय
मुकुटों और प्रशस्तियों के बारे में
एक ही उत्तर है मेरे पास
कि मुझे क्योंकर मिलेंगे?
सोये होते हैं हम जब
अंगीठी के पास से
प्रकट होता है चार पंखुरियों वाला दिव्य अतिथि
ओ मेरी दुनिया, समझने की कोशिश कर
सपनों में अनावृत किये हैं गायक ने
तारों के नियम और सूत्र फूलों के
- 14 अगस्त1918
मारीना अपने पत्र व्यवहार में अक्सर खुल के बताती है वे लिखती हैं कि 'मैं अपनी भावनाओं के अंतिम छोर पर खड़ी हूं। न मुझे अब अंदर से कुछ महसूस होता है न बाहर से। अगर संक्षेप में कहूं तो मैं एक पुरानी घिस चुकी किसी स्वचालित मशीन के जैसी हो चुकी हूं। रोजमर्रा की जरूरतों की फेहरिस्त ने मेरे दिमाग को खत्म कर दिया है। मैं मेयुडन और विज्नोरी में एक आम गृहिणी की जिंदगी जी ही चुकी हूं। घर के सारे काम करना, अब भी वही कर रही हूं। घर के सारे काम जो मुझे आते हैं, मुझे नहीं आते हैं सब। जो मुझे एकदम पसंद नहीं। हर वक्त घर के कामों में, चिंताओं में उलझे रहना, सुबह से रात तक बस खटते रहना...मैं यह सब कर रही हूं। चाहते न चाहते...मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। बस जो काम मैं नहीं कर पा रही हूं वो यह कि मैं हफतों कुछ लिख नहीं पाती हूं....लेकिन कौन इसे जरूरी काम समझता है...कौन...'
- मारीना त्स्वेतायेवा की डायरी, 1931
नितांत एकांत और आत्मीयता मारीना में इस कदर थी कि वह हर एक विषय के विषय मे गहरा चिंतन और स्वतः संवाद पसन्द करती थी । वह किसी भी तरह से मुलाकातों से बचने का प्रयास करती है । मारीना साहित्य के विषय मे लिखती है कि ''जो बहुत पढ़ चुका है, वह सुखी नहीं रह सकता. क्योंकि सुख हमेशा चेतना से बाहर रहता है, सुख केवल अज्ञानता है. मैं अकेली खो जाती हूं, केवल पुस्तकों में, पुस्तकों पर...लोगों की अपेक्षा पुस्तकों से बहुत कुछ मिला है. मैं विचारों में सब कुछ अनुभव कर चुकी हूं, सब कुछ ले चुकी हूं. मेरी कल्पना हमेशा आगे-आगे चलती है. मैं अनखिले फूलों को खिला देख सकती हूं. मैं भद्दे तरीके से सुकुमार वस्तुओं से पेश आती हूं और ऐसा मैं अपनी इच्छा से नहीं करती, किये बिना रह भी नहीं सकती. '
- मारीना की डायरी से
ओह मारीना! कितना नुकसान होता है
आसमान का टूटकर गिरे तारों से
हम भरपाई नहीं कर सकते उसकी
चाहे जहां दौड़ें उनमें बढ़ोत्तरी के लिए
जोड़ के किस तारे की तरफ जाएं
सभी की तो गिनती हो चुकी है पहले से ही
वह भी नहीं कर सकता भरपाई
जो गिराता है उस पवित्र तारे को...
- रिल्के द्वारा मारीना के लिए कविता
(इसी पुस्तक से, अनुवाद- मनोज पटेल)
मारीना प्रेम की कवयित्री है । वह प्रेम को जीवन - बंधन समझती है । मारीना प्रेम की व्याख्या करती है । प्रेम का स्पर्श करती है और प्रेम में ही जीवन व्यतीत करती है । किसी भी व्यक्ति से अंतरतम प्रेम उसके व्यवहार की खूबी है । वह बहुत जल्दी प्रेम में पड़ने वालो में से है । उसे कई - कई बार इससे क्षति होती है किंतु मारीना प्रेम नही छोड़ती है, वह उसे सतत रखती है ।
प्रतिभा की इस पुस्तक को जब देवयानी किसी लाइव सेशन में पढ़ती है तो वो रिल्के व मारीना के प्रेम - संबंधो पर खुलकर पत्र - वाचन करती हैं । दरअसल रिल्के जर्मनी के प्रतिष्ठित लेखक थे । ये संस्मरण कुछ यूं घटित होता है कि मारीना की किसी कविता से प्रभावित होकर मारीना का एक लेखक मित्र बोरिस जो कि खुद मारीना के प्रेम में था, रिल्के को पत्र लिखता है । ये वो पहला कदम था जो रिल्के और मारीना कि तरफ बढ़ा । बोरिस रिल्के को लिखते हैं कि " मारीना एक प्रतिभा सम्पन्न विदुषी ही नही अपितु एक संवेदनशील लेखिका भी है।आपको अपनी कविताओं की पुस्तक मारीना तक पहुंचानी चाहिए" इसमें वह मारीना का पता भी सलंग्न कर देता है। जब मारीना के पास रिल्के का पत्र उसकी किताब के साथ पहुंचता है तो मारीना बहुत खुश होती गई क्योंकि रिल्के उस समय के महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। मारीना को तो यूं भी पत्र-व्यवहार का चाव था ही वो तत्काल ही रिल्के को पत्रोत्तर लिखती है । रिल्के मारीना से प्रभावित हो जाते है । रिल्के बहुत छोटे पत्र लिखते थे । वे किसी भी गम्भीर बात को अत्यंत सुगमता के साथ बहुत छोटे से शब्दों में परिभाषित करते थे । वे लिखते हैं कि "उम्मीद है कि तुम जीवन को समझना सीख रही हो ।" रिल्के के साथ मारीना का लंबा पत्राचार चला । इस दौरान रिल्के ने उसे बताया दिया था कि यदि वह किसी व्यस्तता के चलते किसी पत्र का जवाब समय पर न दे पाए तो इसे अतिरिक्त न लिया जाए । ये कहना मारीना के लिए सन्तुष्टि के द्वार खोलने जैसा था । मारीना को रिल्के के आने के बाद और कविता के विषयों पर लंबे पत्राचारों के बाद स्वयं की कविता से सन्तुष्टि सी होती थी । वो महसूसती थी कि उसकी कविताओं में अब सुधार आ रहा है । मारीना जहां लंबे पत्रों को पसंद करती थी वहीं रिल्के शब्दों को संयम से बरतते थे ।
(इसी पुस्तक से, अनुवाद- मनोज पटेल)
मारीना प्रेम की कवयित्री है । वह प्रेम को जीवन - बंधन समझती है । मारीना प्रेम की व्याख्या करती है । प्रेम का स्पर्श करती है और प्रेम में ही जीवन व्यतीत करती है । किसी भी व्यक्ति से अंतरतम प्रेम उसके व्यवहार की खूबी है । वह बहुत जल्दी प्रेम में पड़ने वालो में से है । उसे कई - कई बार इससे क्षति होती है किंतु मारीना प्रेम नही छोड़ती है, वह उसे सतत रखती है ।
प्रतिभा की इस पुस्तक को जब देवयानी किसी लाइव सेशन में पढ़ती है तो वो रिल्के व मारीना के प्रेम - संबंधो पर खुलकर पत्र - वाचन करती हैं । दरअसल रिल्के जर्मनी के प्रतिष्ठित लेखक थे । ये संस्मरण कुछ यूं घटित होता है कि मारीना की किसी कविता से प्रभावित होकर मारीना का एक लेखक मित्र बोरिस जो कि खुद मारीना के प्रेम में था, रिल्के को पत्र लिखता है । ये वो पहला कदम था जो रिल्के और मारीना कि तरफ बढ़ा । बोरिस रिल्के को लिखते हैं कि " मारीना एक प्रतिभा सम्पन्न विदुषी ही नही अपितु एक संवेदनशील लेखिका भी है।आपको अपनी कविताओं की पुस्तक मारीना तक पहुंचानी चाहिए" इसमें वह मारीना का पता भी सलंग्न कर देता है। जब मारीना के पास रिल्के का पत्र उसकी किताब के साथ पहुंचता है तो मारीना बहुत खुश होती गई क्योंकि रिल्के उस समय के महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। मारीना को तो यूं भी पत्र-व्यवहार का चाव था ही वो तत्काल ही रिल्के को पत्रोत्तर लिखती है । रिल्के मारीना से प्रभावित हो जाते है । रिल्के बहुत छोटे पत्र लिखते थे । वे किसी भी गम्भीर बात को अत्यंत सुगमता के साथ बहुत छोटे से शब्दों में परिभाषित करते थे । वे लिखते हैं कि "उम्मीद है कि तुम जीवन को समझना सीख रही हो ।" रिल्के के साथ मारीना का लंबा पत्राचार चला । इस दौरान रिल्के ने उसे बताया दिया था कि यदि वह किसी व्यस्तता के चलते किसी पत्र का जवाब समय पर न दे पाए तो इसे अतिरिक्त न लिया जाए । ये कहना मारीना के लिए सन्तुष्टि के द्वार खोलने जैसा था । मारीना को रिल्के के आने के बाद और कविता के विषयों पर लंबे पत्राचारों के बाद स्वयं की कविता से सन्तुष्टि सी होती थी । वो महसूसती थी कि उसकी कविताओं में अब सुधार आ रहा है । मारीना जहां लंबे पत्रों को पसंद करती थी वहीं रिल्के शब्दों को संयम से बरतते थे ।
रिल्के मारीना से प्रभावित होकर एक पत्र में लिखते हैं कि -:
" मारीना त्स्वेतायेवा । क्या तुम सचमुच हो?क्या तुम यहाँ नहीं हो ? अगर तुम यहाँ हो तो मैं कहाँ हूँ?"
- रिल्के, 10 मई
ये वे शब्द थे जो मारीना को रिल्के के निकट खींचते है । वो इन्हें बार-बार पढ़ती है । रिल्के के मन मे झांकने का प्रयास करती है । मन ही मन प्रसन्न होती है । रिल्के के अनुमान लगाती है । इनके कुछ समय बाद तक मारीना रिल्के को नियमित पत्र लिखती थी किन्तु उनका मिलना एक बार भी नही हो पाया था । मारीना ने एक पत्र में रिल्के से कहा कि अगली सर्दियों में हमे मिलना चाहिए । किन्तु उस पत्र का उसे उतर ही नही मिला । वो बार बार चौखट को निहारती । पोस्टमेन को आंखे खोझती । लेकिन कहीं से कुछ पता नही चला । मारीना बोरिस को पत्र लिखती है वह कहती है कि न जाने क्यो आजकल रिल्के मेरे पत्रों का जवाब नही देते। कहीं से खबर भी आई थी रिल्के अब नही रहे । वो मृत्यु के अमर-पथ पर चले गए है। किंतु यह पत्र बोरिस तक ना पहुँच सका। मारीना अत्यंत विषाद से घिर गई । मारीना ने रिल्के से प्रेम किया किन्तु कभी उनसे मिल न सकी । न जाने कितने बिंब उसकी कविताओं में रिल्के का आभास करवाते है किन्तु रिल्के सिर्फ रिल्के ही है ।
एक पत्र में वे लिखती है कि, ''मेरे सामने समन्दर है...मेरी आँखों में समन्दर है...मैं दूर तक समन्दर को देखती हूँ...लेकिन महसूस करती हूँ कि नहीं ये मैं नहीं हूँ...मेरी आंसुओं से भरी आँखों को खूबसूरत फूल दिखते हैं, जो अभी खिले नहीं हैं. मैं खुद को लहरों में पिरो देना चाहती हूँ. समन्दर की लहर हो जाना चाहती हूँ. क्यों यह संभव नहीं हो सकता. ''
''मैं जानबूझकर अनखिले फूलों को छूती हूँ. लहरों को महसूस करती हूँ. चिड़ियों से बातें करती हूँ. मैं अपने ख्यालों को जानबूझकर दूर कहीं ले जाती हूँ. लेकिन एक दुःख है जो लगातार मेरा हाथ थामे रहता है. एक दुःख जो लगातार मुझे भीतर से भिगोता रहता है. मैं खुश होने की कितनी भी कोशिश करूँ. क्या इसका अर्थ यह है कि मैं कभी खुश नहीं हो सकती...'''
''एक बूंद एकांत को तरस रही हूं. कितना मुश्किल है यह. बहुत बुरा लग रहा है. अजीब-अजीब से ख्याल आ रहे हैं. एक मामूली से व्यंग्य लिखने वाले को या स्तंभकार को भी (जो संभवत: अपने लिखे को दोबारा पढ़ता तक नहीं के पास भी) लिख पाने का समय और सहूलियतें हैं. और मेरे पास यह एकदम नहीं. दो मिनट तक की खामोशी भी नहीं. हर समय लोगों से घिरी हुई हूं.''
''जीवन जैसा है, वह मुझे पसंद नहीं. मेरे लिए वह कुछ अर्थ रखना तभी शुरू करता है, जब वह कला या साहित्य में रूपान्तरित होता है. इसके बिना जीवन का कोई महत्व नहीं. अगर मुझे कोई सागर के किनारे ले जाये, या फिर स्वर्ग में ही क्यों न ले जाए और लिखने की मनाही कर दे तो मैं दोनों को अस्वीकार कर दूंगी. मेरे लिए इन चीजों का कोई महत्व नहीं है.''
''बहुत सारे लोग हैं, चेहरे हैं, मुलाकातें हैं. लेकिन सभी सतही. कोई भी व्यक्ति प्रभाव नहीं छोड़ता. सब चेहरे एक-दूसरे से टकराते हैं. शोर-शराबे के बीच, लोगों की भीड़ के बीच एकदम अकेली हूं. जीना एकदम अच्छा नहीं लग रहा है.''
मारीना के ये पत्र मारीना की संवेदना के हस्ताक्षर है । मारीना कहती है कि जीवन मे उसे सिर्फ दो ही चीजें सुहाती है । जिनमे वे अपने जीवन का दर्शन पाती है । पहली चीज है ख्वाब और दूसरी है लंबे- लंबे पत्र लिखना । मारीना को लिखना हमेशा से ही सुहाता रहा है । मारीना जीवन- पर्यंत लेखन से जुड़ी रही । मारीना ने अपने जीवन भयावह व्याधि व निर्वासन के दिनों में भी लिखना नही छोड़ा । मारीना अपने समकालीन लेखकों से पत्राचार करती ही रही । ये पत्राचार साहित्य की अक्षय पूंजी के रूप में विद्यमान है । बरहलाल मारीना के जीवन की कल्पना लेखन के अतिरिक्त नही की जा सकती । मारीना को पढ़ते वक्त लगेगा कि कोई बहुत प्यासा आदमी है जिसे कुंआ मिल गया हो । मारीना की सांस लेखन से ही चलती रही ।
पढ़िये मारीना का यह बेहद खास पत्र, 'क्या लोग सचमुच प्रेम को समझ पाते हैं?''
''यह मेरा उदास बसंत है. पेड़ों से जब पत्ते झरते हैं, तो लगता है कि मेरा मन भी झर रहा है. तो क्या किसी नई शुरुआत के लिए ऐसा हो रहा है. क्योंकि पेड़ों पर तो नई कोपलें फूट रही हैं. काश ऐसा सच होता है तो मैं इस उदास बसंत का स्वागत बाहें पसार कर करती. हालांकि अब भी, जबकि मैं जानती हूं कि उम्मीद की कोई कोपल फिलहाल नहीं फूटने वाली है, मुझे बसंत से कोई शिकायत नहीं है. मैं अब भी इसे प्यार करती हूं. ''
''कल मास्को से एक मेहमान आये थे. उनसे पता चला कि बोरीस पास्तेनार्क ने अपनी पत्नी से तलाक ले लिया है क्योंकि वह किसी दूसरे से प्रेम करने लगे हैं. मैं बोरीस के लिए दुखी हूं. मुझे उसके लिए डर लग रहा है. इन दिनों कवियों, लेखकों में यह बीमारी कुछ ज्यादा ही देखने में आ रही है. एक पूरी सूची तैयार की जा सकती है जिसमें बड़े-बड़े नाम शामिल होंगे.''
''क्या ये लोग सचमुच प्रेम को समझ पाते हैं? मुझे तो यह किसी नई मुसीबत को न्योता देने जैसा लगता है. जितना मैं बोरीस को जानती हूं, वो सुखी नहीं रहेगा. उसकी नई पत्नी बहुत सुंदर है. बोरीस उसकी सुंदरता की आग में जलता रहेगा. जबकि उसे शांति चाहिए. वो खुद को समझ ही नहीं पा रहा है. प्रेम का अर्थ संतप्त होना नहीं होता जबकि उसके लिए इसका यही अर्थ है.''
''1926 की गरमियों के वे दिन मुझे अब तक याद हैं. मेरी अंत की कविता पढ़कर वो कदर मेरा दीवाना हो गया था. किस कदर बेचैन था पास आने को. मैंने कितनी मुश्किल से उसे समझाया था कि मैं अपनी जिंदगी में इतनी बड़ी मुसीबत को न्योता नहीं दे सकती. मैं जानती हूं कि प्रेम और विवाह व्यक्तित्व को ध्वस्त कर देते हैं. लेकिन मैंने उसकी भावनाओं का अनादर नहीं किया. न जाने क्यों मन में यह विश्वास था कि कभी मैं उससे जरूर मिलूंगी. सोचती थी कि अपने जीवन के सबसे मुश्किल वक्त में मैं बोरीस के पास जाऊंगी. शायद अंतिम सांस लेने के लिए. उसकी भावनाओं की आंच मुझे रोशन करती रही है. लेकिन अब ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं बची है.''
''कितना अजीब लग रहा है कि जो भावनाएं कभी मेरे लिए थीं, वही अब दूसरे के लिए हैं. पुरुष के लिए उन क्षणों में जब वह प्रेम करता है, प्रेम ही सब कुछ होता है. शायद इसीलिए वो उतनी ही आसानी से उससे मुक्त भी हो लेता है. संतप्ति और विरक्ति...मुझे गलत मत समझना. मुझे बोरीस से ईर्ष्या नहीं हो रही है. नाराजगी भी नहीं है. कोई तीव्र पीड़ा भी नहीं है. बस एक खालीपन है....मन के सारे पत्ते झर रहे हैं...''
(20 मार्च 1931 को अन्ना अन्तोवना को पेरिस से लिखे पत्र का एक हिस्सा...)
मारीना के इस पत्र में प्रेम की सूक्ष्म व्याख्या है ।मारीना अपने जीवन मे प्रेम को हमेशा ही बंधन मानती रही । मारीना जानती थी कि बोरिस उसके प्रेम में है किंतु वह इस बात का भी ध्यान रखती है कि रिल्के से उसका प्रेम भी बोरिस की देन है । यह भी जानती थी कि बोरिस ही वह पुल है जिससे कि वह रिल्के तक पहुंची है । रिल्के और मारीना का प्रेम अद्भुत रहा । वे कभी प्रत्यक्ष मिल नहीं पाए । केवल पत्र व्यवहार चला ।
''मैं जानबूझकर अनखिले फूलों को छूती हूँ. लहरों को महसूस करती हूँ. चिड़ियों से बातें करती हूँ. मैं अपने ख्यालों को जानबूझकर दूर कहीं ले जाती हूँ. लेकिन एक दुःख है जो लगातार मेरा हाथ थामे रहता है. एक दुःख जो लगातार मुझे भीतर से भिगोता रहता है. मैं खुश होने की कितनी भी कोशिश करूँ. क्या इसका अर्थ यह है कि मैं कभी खुश नहीं हो सकती...'''
''एक बूंद एकांत को तरस रही हूं. कितना मुश्किल है यह. बहुत बुरा लग रहा है. अजीब-अजीब से ख्याल आ रहे हैं. एक मामूली से व्यंग्य लिखने वाले को या स्तंभकार को भी (जो संभवत: अपने लिखे को दोबारा पढ़ता तक नहीं के पास भी) लिख पाने का समय और सहूलियतें हैं. और मेरे पास यह एकदम नहीं. दो मिनट तक की खामोशी भी नहीं. हर समय लोगों से घिरी हुई हूं.''
''जीवन जैसा है, वह मुझे पसंद नहीं. मेरे लिए वह कुछ अर्थ रखना तभी शुरू करता है, जब वह कला या साहित्य में रूपान्तरित होता है. इसके बिना जीवन का कोई महत्व नहीं. अगर मुझे कोई सागर के किनारे ले जाये, या फिर स्वर्ग में ही क्यों न ले जाए और लिखने की मनाही कर दे तो मैं दोनों को अस्वीकार कर दूंगी. मेरे लिए इन चीजों का कोई महत्व नहीं है.''
''बहुत सारे लोग हैं, चेहरे हैं, मुलाकातें हैं. लेकिन सभी सतही. कोई भी व्यक्ति प्रभाव नहीं छोड़ता. सब चेहरे एक-दूसरे से टकराते हैं. शोर-शराबे के बीच, लोगों की भीड़ के बीच एकदम अकेली हूं. जीना एकदम अच्छा नहीं लग रहा है.''
मारीना के ये पत्र मारीना की संवेदना के हस्ताक्षर है । मारीना कहती है कि जीवन मे उसे सिर्फ दो ही चीजें सुहाती है । जिनमे वे अपने जीवन का दर्शन पाती है । पहली चीज है ख्वाब और दूसरी है लंबे- लंबे पत्र लिखना । मारीना को लिखना हमेशा से ही सुहाता रहा है । मारीना जीवन- पर्यंत लेखन से जुड़ी रही । मारीना ने अपने जीवन भयावह व्याधि व निर्वासन के दिनों में भी लिखना नही छोड़ा । मारीना अपने समकालीन लेखकों से पत्राचार करती ही रही । ये पत्राचार साहित्य की अक्षय पूंजी के रूप में विद्यमान है । बरहलाल मारीना के जीवन की कल्पना लेखन के अतिरिक्त नही की जा सकती । मारीना को पढ़ते वक्त लगेगा कि कोई बहुत प्यासा आदमी है जिसे कुंआ मिल गया हो । मारीना की सांस लेखन से ही चलती रही ।
पढ़िये मारीना का यह बेहद खास पत्र, 'क्या लोग सचमुच प्रेम को समझ पाते हैं?''
''यह मेरा उदास बसंत है. पेड़ों से जब पत्ते झरते हैं, तो लगता है कि मेरा मन भी झर रहा है. तो क्या किसी नई शुरुआत के लिए ऐसा हो रहा है. क्योंकि पेड़ों पर तो नई कोपलें फूट रही हैं. काश ऐसा सच होता है तो मैं इस उदास बसंत का स्वागत बाहें पसार कर करती. हालांकि अब भी, जबकि मैं जानती हूं कि उम्मीद की कोई कोपल फिलहाल नहीं फूटने वाली है, मुझे बसंत से कोई शिकायत नहीं है. मैं अब भी इसे प्यार करती हूं. ''
''कल मास्को से एक मेहमान आये थे. उनसे पता चला कि बोरीस पास्तेनार्क ने अपनी पत्नी से तलाक ले लिया है क्योंकि वह किसी दूसरे से प्रेम करने लगे हैं. मैं बोरीस के लिए दुखी हूं. मुझे उसके लिए डर लग रहा है. इन दिनों कवियों, लेखकों में यह बीमारी कुछ ज्यादा ही देखने में आ रही है. एक पूरी सूची तैयार की जा सकती है जिसमें बड़े-बड़े नाम शामिल होंगे.''
''क्या ये लोग सचमुच प्रेम को समझ पाते हैं? मुझे तो यह किसी नई मुसीबत को न्योता देने जैसा लगता है. जितना मैं बोरीस को जानती हूं, वो सुखी नहीं रहेगा. उसकी नई पत्नी बहुत सुंदर है. बोरीस उसकी सुंदरता की आग में जलता रहेगा. जबकि उसे शांति चाहिए. वो खुद को समझ ही नहीं पा रहा है. प्रेम का अर्थ संतप्त होना नहीं होता जबकि उसके लिए इसका यही अर्थ है.''
''1926 की गरमियों के वे दिन मुझे अब तक याद हैं. मेरी अंत की कविता पढ़कर वो कदर मेरा दीवाना हो गया था. किस कदर बेचैन था पास आने को. मैंने कितनी मुश्किल से उसे समझाया था कि मैं अपनी जिंदगी में इतनी बड़ी मुसीबत को न्योता नहीं दे सकती. मैं जानती हूं कि प्रेम और विवाह व्यक्तित्व को ध्वस्त कर देते हैं. लेकिन मैंने उसकी भावनाओं का अनादर नहीं किया. न जाने क्यों मन में यह विश्वास था कि कभी मैं उससे जरूर मिलूंगी. सोचती थी कि अपने जीवन के सबसे मुश्किल वक्त में मैं बोरीस के पास जाऊंगी. शायद अंतिम सांस लेने के लिए. उसकी भावनाओं की आंच मुझे रोशन करती रही है. लेकिन अब ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं बची है.''
''कितना अजीब लग रहा है कि जो भावनाएं कभी मेरे लिए थीं, वही अब दूसरे के लिए हैं. पुरुष के लिए उन क्षणों में जब वह प्रेम करता है, प्रेम ही सब कुछ होता है. शायद इसीलिए वो उतनी ही आसानी से उससे मुक्त भी हो लेता है. संतप्ति और विरक्ति...मुझे गलत मत समझना. मुझे बोरीस से ईर्ष्या नहीं हो रही है. नाराजगी भी नहीं है. कोई तीव्र पीड़ा भी नहीं है. बस एक खालीपन है....मन के सारे पत्ते झर रहे हैं...''
(20 मार्च 1931 को अन्ना अन्तोवना को पेरिस से लिखे पत्र का एक हिस्सा...)
मारीना के इस पत्र में प्रेम की सूक्ष्म व्याख्या है ।मारीना अपने जीवन मे प्रेम को हमेशा ही बंधन मानती रही । मारीना जानती थी कि बोरिस उसके प्रेम में है किंतु वह इस बात का भी ध्यान रखती है कि रिल्के से उसका प्रेम भी बोरिस की देन है । यह भी जानती थी कि बोरिस ही वह पुल है जिससे कि वह रिल्के तक पहुंची है । रिल्के और मारीना का प्रेम अद्भुत रहा । वे कभी प्रत्यक्ष मिल नहीं पाए । केवल पत्र व्यवहार चला ।
दरअसल ये मारीना का व्यक्तित्व ही था कि वह उम्र भर प्रेम की खोज में रही । जीवन के विकट दौर के में जब मारीना ने प्रेम विवाह के पश्चात भी आने समय के दो सबसे प्रतिष्ठित लेखकों से प्रेम किया ।जिनमें एक थे रिल्के और दूसरे थे बोरिस पास्तरनाक। इस प्रेम के अलग-अलग रूप थे जिसमें ईमानदारी थी। वह दोनों को ही पत्र लिखती है। बोरिस के संवाद यदि हम देखें तो हम पाएंगे कि बोरिस भी मारीना से प्रेम में था । रूसी साहित्य का यह त्रिकोणीय प्रेम अद्भुत है जिसमें बोरिस लिखते हैं कि, ''प्रिय मारीना,आज में तुमसे वह कहना चाहता हूँ जिसे मैं लम्बे समय से अपने भीतर छुपाया हूँ,उन शब्दो को तुम्हे सौंपना चाहता हूँ जिनकी आग में मैं न जाने कब से झुलस रहा हूँ, मारीना तुम्हारे ख्याल का मेरे आस-पास होना मुझे क्या से क्या बना देता है ।तुम नही जानती मैं तुम्हारे पास होना चाहता हूं।तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ हमेशा के लिए ।तुम निशंकोच होकर मुझे अपनी भावनाओं के बारे में बताना क्योंकि मैं तुम्हारे कारणों को समझने की योग्यता रखता हूँ । निकट भविष्य में तुमसे मिलने की इच्छा रखता हूँ ।जब तुम कहो, जहां तुम कहो ।
तुम्हारा
बोरिस पास्तरनाक"
30 अप्रैल 1926
बोरिस एक अन्य पत्र मई में लिखते हैं कि, "यह तुमने क्या किया,क्यो किया और कैसे कर पाई तुम।कल रिल्के से मिले पत्र ने मुझे तुम्हारे और इनके के मध्य में सब कुछ बता दिया है ।मैं इस बात कि कल्पना भी नहीं कर सकता कि तुम्हारी जैसी प्यारी खूबसूरत दिल रखने वाली स्त्री जिसका जन्म समय के बाद मुहब्बत का राग आने के लिये हुआ है वह कैसे ऐसा बेसुरा राग छेड़ सकी मुझे नहीं पता ।अपनी जिंदगी में मैंने इससे पहले कब इतना गुस्सा और दुख एक साथ महसूस किया था । " बोरिस ने उसी दिन एक और पत्र लिखा कि "मैं इस बारे में रिल्के को कुछ भी नहीं लिख रहा हूं मारीना क्योंकि मैं उन्हें भी तुमसे कम प्रेम नहीं करता तुम यह सब क्यो न देख पाए मारीना मेरे दो प्रिय लोगों को तुमने मुझसे छीन लिया ।"
बोरिस के ये पत्र मारीना से प्रेम को दर्शाते हैं किंतु मारीना जब एक साथ दो प्रेम जी रही थी तो ऐसे समय में वह किसी एक को भी खोना नहीं चाहती थी। "सुनो रिल्के ! ना जाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं बहुत बुरी हूँ बहुत ही बुरी पिछले दिनों की लंबी खामोशी मेरी इसी अहसास के चलते थी।बोरिस पास्तरनाक को लगता है कि मैंने तुम्हें पपत्र लिखकर और उससे करीबी का अहसास पाकर उसे कोई धोखा दिया है ।राइनेर मैं सचमुच बुरी हूँ मैंने उसका दिल दुखाया है और पिछले पत्र मैं तुमसे इस बात का जिक्र भी नही किया ।असल में मैं जब तुमसे बात करती हूँ तो मैं तुम्हे और खुद को एक एकांतिक माहौल में रखना चाहती हूं। जहां हमे किसी और का कोई ख्याल कोई और बात जो भी न सके लेकिन यह तो ठीक नहीं है । राइनेर तुम्हारे और मेरे बीच सब कुछ पानी की तरफ साफ होने चाहिए इसलिए तुम्हे आज ये पत्र लिख रही हूँ । मैं अपनी जिंदगी में झूठ के लिए कोई जगह नही रखना चाहती हालांकि मेरे हिस्से बहुतों के झूठ है फिर भी रिश्तों की ईमानदारी और सच्चाई पर विश्वास रखती हूं ।उम्मीद है तुम अपनी मारीना को समझ सकोगे ।
तुम्हारी
मारीना
मारीना की ये दुखांतिका अविश्वसनीय है । मारीना सम्पूर्ण जीवन झूठ से दूर रही । वो मुक्त कंठ से इस सच्चाई को स्वीकारती भी है ।
तुम्हारा
बोरिस पास्तरनाक"
30 अप्रैल 1926
बोरिस एक अन्य पत्र मई में लिखते हैं कि, "यह तुमने क्या किया,क्यो किया और कैसे कर पाई तुम।कल रिल्के से मिले पत्र ने मुझे तुम्हारे और इनके के मध्य में सब कुछ बता दिया है ।मैं इस बात कि कल्पना भी नहीं कर सकता कि तुम्हारी जैसी प्यारी खूबसूरत दिल रखने वाली स्त्री जिसका जन्म समय के बाद मुहब्बत का राग आने के लिये हुआ है वह कैसे ऐसा बेसुरा राग छेड़ सकी मुझे नहीं पता ।अपनी जिंदगी में मैंने इससे पहले कब इतना गुस्सा और दुख एक साथ महसूस किया था । " बोरिस ने उसी दिन एक और पत्र लिखा कि "मैं इस बारे में रिल्के को कुछ भी नहीं लिख रहा हूं मारीना क्योंकि मैं उन्हें भी तुमसे कम प्रेम नहीं करता तुम यह सब क्यो न देख पाए मारीना मेरे दो प्रिय लोगों को तुमने मुझसे छीन लिया ।"
बोरिस के ये पत्र मारीना से प्रेम को दर्शाते हैं किंतु मारीना जब एक साथ दो प्रेम जी रही थी तो ऐसे समय में वह किसी एक को भी खोना नहीं चाहती थी। "सुनो रिल्के ! ना जाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं बहुत बुरी हूँ बहुत ही बुरी पिछले दिनों की लंबी खामोशी मेरी इसी अहसास के चलते थी।बोरिस पास्तरनाक को लगता है कि मैंने तुम्हें पपत्र लिखकर और उससे करीबी का अहसास पाकर उसे कोई धोखा दिया है ।राइनेर मैं सचमुच बुरी हूँ मैंने उसका दिल दुखाया है और पिछले पत्र मैं तुमसे इस बात का जिक्र भी नही किया ।असल में मैं जब तुमसे बात करती हूँ तो मैं तुम्हे और खुद को एक एकांतिक माहौल में रखना चाहती हूं। जहां हमे किसी और का कोई ख्याल कोई और बात जो भी न सके लेकिन यह तो ठीक नहीं है । राइनेर तुम्हारे और मेरे बीच सब कुछ पानी की तरफ साफ होने चाहिए इसलिए तुम्हे आज ये पत्र लिख रही हूँ । मैं अपनी जिंदगी में झूठ के लिए कोई जगह नही रखना चाहती हालांकि मेरे हिस्से बहुतों के झूठ है फिर भी रिश्तों की ईमानदारी और सच्चाई पर विश्वास रखती हूं ।उम्मीद है तुम अपनी मारीना को समझ सकोगे ।
तुम्हारी
मारीना
मारीना की ये दुखांतिका अविश्वसनीय है । मारीना सम्पूर्ण जीवन झूठ से दूर रही । वो मुक्त कंठ से इस सच्चाई को स्वीकारती भी है ।
(एक दूर देश में बैठे पाठक ने मारीना को तलाशा और कुछ लिख भेजा. यह आत्मीय टिप्पणी है जिसे मारीना से स्नेह हो गया. पाठकों तक मारीना को ले जाना ही इस किताब का उद्देश्य था. कमल जी का शुक्रिया )
1 comment:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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