Tuesday, October 13, 2020

कोपलों की स्मृति



ये जो झरे हैं पेड़ों से
ये जिए जा चुके लम्हे हैं
इनमें कोपलों की स्मृति है
बारिश में झूमने के पलों की
महक है
इनमें पंछियों की
शरारतों का किस्सा है
इनके पीलेपन में बाकी हैं
जी जा चुकी हरियाली के निशान
इनमें जिन्दगी की पूरी दास्तान है....

4 comments:

शिवम कुमार पाण्डेय said...

वाह।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-10-2020) को   "रास्ता अपना सरल कैसे करूँ"   (चर्चा अंक 3854)    पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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उषा किरण said...

ये जो झरे हैं.....बहुत खूब

Onkar said...

बहुत सुन्दर