ये जो झरे हैं पेड़ों से
ये जिए जा चुके लम्हे हैं
इनमें कोपलों की स्मृति है
बारिश में झूमने के पलों की
महक है
इनमें पंछियों की
शरारतों का किस्सा है
इनके पीलेपन में बाकी हैं
जी जा चुकी हरियाली के निशान
इनमें जिन्दगी की पूरी दास्तान है....
ये जिए जा चुके लम्हे हैं
इनमें कोपलों की स्मृति है
बारिश में झूमने के पलों की
महक है
इनमें पंछियों की
शरारतों का किस्सा है
इनके पीलेपन में बाकी हैं
जी जा चुकी हरियाली के निशान
इनमें जिन्दगी की पूरी दास्तान है....
4 comments:
वाह।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-10-2020) को "रास्ता अपना सरल कैसे करूँ" (चर्चा अंक 3854) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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ये जो झरे हैं.....बहुत खूब
बहुत सुन्दर
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