Saturday, September 26, 2020

साहिर से बगावती तेवर थे मारीना के



- इन्द्रजीत सिंह 
दुनिया मे अनेक ऐसे महान कवि हुए जिनकी महानता को स्वीकारने और पहचानने में बहुत समय लगा। कबीर साहब को स्थापित करने में टैगोर और हजारीप्रसाद द्विवेदी का महत्वपूर्ण योगदान है। उसी तरह रूस की महान कवयित्री मारीना त्स्वेतायेवा (26 सितंबर 1892 से 31 अगस्त 1941) के योगदान को रेखांकित करने और भारतीय काव्य रसिकों के बीच पहुंचाने में तीन लोगों का विशेष हाथ है। सर्वप्रथम रूसी प्रोफेसर बुर्लाकोव ने जे एन यू के रूसी भाषा और साहित्य के भारतीय विद्वान प्रोफेसर वरयाम सिंह के मन मे मारीना की कविताओं के प्रति जिज्ञासा उतपन्न की और उन्होंने मारीना की कविताओं को खोज करके निकाला और हिंदी अनुवाद के माध्यम से मारीना की काव्य प्रतिभा को भारतीय कविता प्रेमियों तक पहुंचाया। मारीना की चुनी हुई रूसी कविताओं का हिंदी में अनुदित कविता स संग्रह वरयाम सिंह जी ने प्रकाशित करवाया और नाम दिया "आएंगे दिन कविताओं के"। प्रोफेसर वरयाम सिंह ने "कुछ खत कुछ कविताएं", और "बेसहारा समय मे" मारीना की अन्य रचनाओं के हिंदी में अनुवाद करके मारीना की काव्य प्रतिभा से हिंदी प्रेमियों तक पहुंचाने का अविस्मरणीय काम किया। 
"वास्तव में मारीना की कविताओं का द्वार हिंदी पाठकों के लिए वरयाम सिंह जी ने खोला । कविता के अंदर भी कई द्वार होते है उन तक पहुंचने का काम किया जानी मानी कवयित्री और मारीना की अनन्य प्रेमी प्रतिभा कटियार ने । प्रतिभा जी ने अपनी काव्य प्रतिभा लगन समर्पण और प्रोफेसर वरयाम सिंह की रहनुमाई में मारीना के जीवन और कविताओं को विशाल हिंदी पाठकों तक पहुंचाने का क़ाबिले तारीफ काम किया है। मारीना के पिता प्रोफ़ेसर और मां संगीत अनुरागी थी। अमृता प्रीतम सरीखी प्रेम कविताओं को लिखने जीने वाली मारीना की शख्शियत में मायकोवस्की और साहिर की तरह बगावती तेवर भी थे।

संवाद प्रकाशन ने रूस की कवयित्री मारीना की जीवनी को बहुत खूबसूरत ढंग से छापा है। कवि संपादक आलोक श्रीवास्तव के देख रेख में संवाद प्रकाशन लगातार बेहतरीन साहित्य प्रकाशित कर रहा है। मारीना इसका ताजा उदाहरण है। जाने माने आलोचक नामवर सिंह जी ने मारीना की शख्शियत के बारे में अपने लेख -"आधुनिक रूसी कविता का आरंभ " में लिखा है-"मायकोवस्की से उनका(मारीना) अद्भुद साम्य दिखाई पड़ता है।कविता और कविता की भाषा के प्रति वही विस्फोटक और विध्वंसक रुख-किंतु संयमित और नियंत्रित।कविता में अपने आपको अपने अंतरतम को पूरी तरह अनावृत करखे रख देने का ऐसा साहस अन्यत्र दुर्लभ है।"

मारीना की एक सुंदर कविता है - "अगस्त" अगस्त - तारक पुष्पों का अगस्त - सितारों का अगस्त -महीना है फूलों की बौछारों का" प्रोफेसर वरयाम सिंह के अनुसार मारीना के जीवन में भले ही कड़वाहट रही हो उनकी कविताओं में कोई कड़वाहट नहीं दिखती "। प्रतिभा को इस कार्य को सम्पन्न करने में सात साल लग गए । इस विलंब का कारण बताते हुए प्रतिभा पुस्तक की भूमिका में लिखती हैं-"इस बीच एक हादसा हुआ। बड़ा हादसा।आफिस में एक साथी की गलती से मेरे लैपटॉप पर गर्म चाय गिर गई। सारा डेटा खत्म।कुछ भी नहीं बचा।यह बड़ा हादसा था ,जिससे उबरने में काफ़ी वक़्त लगा। किताब पर काम दोबारा शुरू करना । दोबारा जीने जैसा था। हिम्मत की दोबारा सहेजा। मारीना की ज़िंदगी के हिस्सों से गुजरते हुए महसूस होता कि मैं ही मारीना हूँ।मैं ही उस दुख से गुज़र रही हूँ। मारीना का स्पष्ट मानना था कि "कवि केवल एक देश का नहीं होता। कवि सिर्फ कवि होता है ,वह किसी देश का कवि नहीं होता। इसलिए मैं रूस की कवि न कहलाई जाना पसंद करूंगी। मुझे सिर्फ कवि कहे।देशों की सीमाओं से परे ,रिल्के क्या सिर्फ जर्मनी के कवि हैं?"

मारीना ने जीवन में शुक्ल पक्ष कम देखे कृष्ण पक्ष ज्यादा। देश से निर्वासन। मारीना के यौवन काल तक पहुंचते पहुंचते तक माता पिता काल कवलित हो जाना , छोटी बेटी इरिना की भूख और बीमारी से मृत्य। पति को भी जेल की यातना । बड़ी बेटी भी किसी गंभीर आरोप में गिरफ्तार हुई। मारीना की ज़िंदगी में सुख की कलियां बहुत कम दुख के कांटे ज्यादा हो जाने से खुद को फांसी लगाकर उन्होंने आत्महत्या कर ली। ज़िन्दगी का साथ निभाने की बजाय मौत को गले लगाना मारीना के चाहने वालो प्रशंसकों के गले नहीं उतरता है। रूस के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार (नोबेल पुरस्कार से सम्मानित) बोरिस पास्तरनाक से मारीना का प्रेम पुस्तक का दिलचस्प हिस्सा और खूबसूरत किस्सा है।

प्रतिभा कटियार ने बहुत मेहनत से ,बड़े अरमान से बेपनाह मुहब्बत से मारीना की जीवनी को प्रामाणिक ,जीवंत ,पठनीय मार्मिक और तार्किक बनाने की क़ाबिले गौर और क़ाबिले तारीफ कोशिश की है। प्रतिभा कटियार की जितनी तारीफ की जाए कम है। मारीना की 128 वीं जयंती पर सादर नमन। मारीना मर कर भी अमर है। मारीना का मानना था कि कवि एक देश का नहीं होता । यह भी सच है सच्चा और अच्छा कवि भी कभी नहीं मरता। मारीना की कविताओं की खुशबू हिंदी पाठकों के साथ साथ अन्य भारतीय भाषाओं के पाठकों तक अनुवाद के माध्यम से पूरे भारत भर में पहुंचे ।
इन्द्र्जीत सिंह जाने माने शिक्षाविद व साहित्यकार हैं. केन्द्रीय विद्यालय से जीवन भर जुड़े रहे और शिक्षा में साहित्य के समायोजन से क्या क्या कमाल हो सकते हैं इसके उदाहरण रखते रहे. जिन कवियों या साहित्यकारों को छात्र पाठ्यपुस्तकों में पढ़ते हैं उन्हें बुलाकर छात्रों से उनसे सीधा संवाद करवाने की कोशिश शिक्षा जगत में बिरली दिखती है. गीतकार शैलेन्द्र पर उनकी पुस्तक ने उन्हें बरसों अपने भीतर डुबोये रखा. इन दिनों वो रूस में हैं और वहां भी शिक्षा और साहित्य के बीच की कड़ियों को जोड़ते हुए कुछ नया गढ़ रहे हैं.


 

7 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-09-2020) को    "स्वच्छ भारत! समृद्ध भारत!!"    (चर्चा अंक-3837)    पर भी होगी। 
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
--

Onkar said...

सुन्दर प्रस्तुति

PAL RAJESH said...

मार्मिक प्रस्तुति।

Harsh Wardhan Jog said...

शेयर करने के लिए धन्यवाद

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया प्रतिभा कटियार जी, नमस्ते👏! आपने इंद्रजीत सिंह जी के इस लेख को यहाँ प्रस्तुत कर रूसी कवियत्री मैरिना को करीब से जानने का अवसर उपलब्ध कराया, इनके लिए हृदय तल से साधुवाद!
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सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ

Rishikant Prakash said...

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