Friday, October 19, 2018

नदी, उदासी, इश्क



उस रोज जब
तुम्हारी निगाह में
बुझ रहा था प्रेम

आसमान में
बुझ रहा था चाँद

नदी बूझ रही थी
इस बुझ जाने की कहानी.

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नदी किनारे तुम्हारे संग होने का ख़वाब
कितना सुंदर था जब तक वो ख्वाब था

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नदी ने
आँखों के पानी को सहेज लिया

तुमने सहेज ली
दुनियादारी

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उस रोज जब तुम्हारी हथेलियों को
लेकर अपनी हथेलियों में
कहनी थी
किसी ख्वाब के पूरा होने की कहानी

तुम्हारी आँखों में दिखा
'द एंड' का बोर्ड

वहां कोई पानी क्यों नहीं था?

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नदियाँ जानती हैं
बहुत सी कडवाहट सहेजकर भी
देना नमी,
शीतलता

लेकिन ऐसा करते करते
वो बूढ़ी होने लगती हैं,
थकने लगती हैं एक रोज
और तब तुम शिकायत करते हो
जीवन में घिर आयी नमी की कमी की

नदियों को प्रदूषण से बचाना सीखो
धरती पर भी
अपने भीतर भी.

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रात गा रही थी मिलन का राग
नदी के किनारे
उगा था चौथ का चाँद

राग खंडित करने का हुनर
तुम्हें आता था.

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नदियों के पास नहीं इतना पानी
कि बेवफाई से जन्मे सूखे को
प्यार की नमी बख्श सकें

नदियाँ उदास प्रेमियों के आगे
सर झुकाए रहती हैं

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नदी प्रार्थना में थी
चाँद भी था सजदे में
हवाएं पढ़ रही थीं दुआएं
कि वक्त की शाख से
गिरा है जो प्रेम का लम्हा
वो लम्हा टूट न जाए कहीं

उस लम्हे को
तोड़ा तुम्हीं ने बेतरह

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इंतजार से मोहब्बत निखरती है
सुना था

लम्बे, बहुत लम्बे इंतजार के बाद भी
टूटी बिखरी ही मिली मोहब्बत

नदी बेबस सी देखती रही
मिलन की घड़ियों का
टूटन में बदलना

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नदियाँ सूख रही हैं
धरती की भी
इंसानों के भीतर की भी
नदियों को बचाया जाना
जरूरी है
मोहब्बत का बचाया जाना
ज़रूरी है

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जब जब तुमने अनसुना किया
नदियों के रुदन को

धरती पर सूखती गयी
प्रेम की फसल.


1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

सारी नदियों को समेट कर नदियों के समुन्दर में मिला दिया। बहुत सुन्दर।