Friday, January 1, 2016

हम तुझे बीतने नहीं देंगे...



कैलेण्डर के आखिरी पन्ने से गप्प लगाते लगाते कब नींद लगी पता ही  नहीं चला. ये लम्हों से गुफ्तगू के दौरान लम्हों का हमें जवाब का एक ढब है. 'नींद' हाँ ये सौगात मिली इस बरस. नींद को तरसी, बिन मौसम बरसी आँखों को नींद मिली। खुद पे फिर से ऐतबार करना सीखा, कुछ कमजोरियों को साधना सीखा, कुछ नयी कमजोरियों से दिल लगाना भी.

जिन नन्ही उँगलियों को थामकर अ ब स द लिखना सिखाया, जिसे साइकिल के आगे वाले डंडे पर बिठाकर इतराई फिरती है, जिसके होने ने जिंदगी को एक अलग ही एहसास दिया, उस नन्हे भाई को उसके ख़्वाबों  के साथ होते देखना का सुख मिला, उसके ख्वाबों से हमारा रिश्ता जुड़ा। परिवार शब्द में एक नयी धड़कन शामिल हुई, अपनी खिलखिलाहटों के साथ ऐ बीते हुए बरस तू, अब हम तुझे बीतने नहीं देंगे।

हथेलियों में अपनी बंद आँखों को खोलकर जिसने दो जहाँ खोल दिए थे अब उस बेटी का संसार खुलते देखती हूँ. बचपन और किशोरावस्था हाथ थामे चल रहे हैं. जिंदगी के संघर्ष भी संगीत से लगते हैं उसकी हथेलियां छूते हुए. जब मैं नींद में थी लाडो नानी से पूछकर बनाती है मेरे लिए हलवा, और ठीक बारह बजे हम एक दुसरे को मीठा खिलाते हैं. हमेशा माँ के बनाये मीठे से नए कैलेण्डर का पन्ना पलटती रही हूँ, इस बार बेटी के बनाये मीठे से. जिंदगी की इस मिठास के बाद भी कोई शिकायत करने से बड़ा गुनाह कोई नहीं।

5 comments:

shashi purwar said...

आपको सपरिवार नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर...
आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!

Onkar said...

सुन्दर पोस्ट

Unknown said...

अति सुन्दर रचना। नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। सस्नेह

Asha Joglekar said...

नववर्ष का सुंदर संस्मरण। शुभ कामनाएँ।