सुनो, वो जो धनिया के बीज बोये थे न, जिनके उगने का कबसे इंतज़ार था, वो उग आये हैं. इस बार घर लौटा हूँ तो वो मुस्कुराते हुए मिले, जाने क्यों उन्हें मुस्कुराते हुए देख तुम्हारी मुस्कुराहट याद आयी.
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बिल्ली का बच्चा जिसे गली के कुत्तों से बचाया था उस ठण्ड की रात में, और जिसे घर लाने पर शालू नाराज हो गयी थी, वो लौटा नहीं कई दिनों से.…अनहोनी कि आशंका से मन घबराता है यार. अब तुम मोह और दर्द के रिश्ते को मत समझाना। समझता हूँ मैं, पर मुझे उसकी मासूम आँखें याद आती हैं.… वो ठीक होगा न? हमेशा की तरह कह दो न कि सब ठीक है.… तुम्हें पता है तुम्हारे कहते ही सचमुच ठीक सा महसूस होने लगता है धीरे-धीरे....
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यह इस दिन का आखिरी ख़त है. असल में आखिरी शब्द मुझे बहुत चुभता है. आखिरी शब्द का इस्तेमाल सिर्फ दुःख के दिनों, दर्द के, संघर्षों के ख़त्म होने के सन्दर्भ ही होना चाहिए। आखिरी बार। कि एक बार इसका इस्तेमाल होने के बाद इस शब्द की ज़रुरत ही न बचे. जब भी मैं आखिरी लिखता हूँ मैं अपने भीतर व्याकुलता महसूस करता हूँ. जैसे जिद सी जागती है आखिरी न होने देने की.
सुनो, तुम नाराज मत होना लेकिन मैंने उस रोज तुम्हारी बात नहीं मानी और मैं भीगता रहा. देर रात सड़क पर भीगते हुए पैदल चलते हुए मैं तुम्हारा अपने पास होना महसूस करता हूँ.
इस वक़्त मैं बुखार में हूँ.… मुस्कुरा रही हो न तुम?
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मेरे ऑफिस के सामने एक सड़क है जिसका जिक्र मैं तुमसे अक्सर करता हूँ, उस सड़क के पार कोई बिल्डिंग बन रही है. वहाँ काम करने वाले मजदूरों के बच्चों से दोस्ती हो चली है मेरी। हम दूर से एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं. आज सुबह मैं जब चाय पीते हुए उनसे आँख का खेल खेल रहा था न जो मैंने तुमसे सीखा है तो वो पास में पड़े डंडे को गाड़ी बनाकर खेलने लगा. वो इतना खुश था, क्या कहूँ, उसका वो बार-बार मुड़कर मेरी ओर देखना। मुझे जब भी कोई सुख का लम्हा छूता है तो महसूस होता है कि तुमने मेरी बांह थाम ली है, या कंधे पर सर रखकर मुस्कुरा रही हो. बहुत दूर, बहुत पास.
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3 comments:
इधर उधर बिखरे अवलोकन, ठहरे वहीं मन।
तुम यूँ ही बरसते रहना ………!
so beautiful words...
rendered me speechless.
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