तब भी तो तुम आये थे...
आंख में नूर की और
दिल में लहू की सूरत
याद की तरह धड़कते हुये
दिल की सूरत
तुम नहीं आये अभी
फिर भी तो तुम आये हो
रात के सीने में
महताब के खंजर की तरह
सुबह के हाथ में
सुबह के हाथ में
खुर्शीद के सागर की तरह .
तुम नहीं आओगे जब
फिर भी तो तुम आओगे
ज़ुल्फ़ दर ज़ुल्फ़ बिखर जायेगा
ज़ुल्फ़ दर ज़ुल्फ़ बिखर जायेगा
फिर रात का रंग
शबे -तनहाई में भी
शबे -तनहाई में भी
लुत्फ-ए-मुलाकात का रंग।
आओ, आने की करें बात
कि तुम आये हो...
अब तुम आए हो तो
मैं कौन सी शय नज्र करूं
कि मेरे पास
सिवा मेहरो वफा कुछ भी नहीं
एक दिल एक तमन्ना के सिवा
एक दिल एक तमन्ना के सिवा
कुछ भी नहीं
एक दिल एक तमन्ना के सिवा
एक दिल एक तमन्ना के सिवा
कुछ भी नहीं...
- अली सरदार जाफरी
13 comments:
आपके पास लाजवाब खज़ाना है
आपने बढ़िया गजल लगाई है!
लेकिन कुछ अपना खजाना भी तो प्रकाशित कीजिए!
आभार इसे पढ़वाने का.
ये गजल नहीं नज्म है । और ये कैफी की नहीं अली सरदार जाफरी की नज्म है ।
भूल सुधार- यह नज़्म सरदार जाफरी की है. युनुस जी शुक्रिया!
wow
bahut sundar rachna he maza aagya pad kar
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
कुछ भी नहीं
एक दिल एक तमन्ना के सिवा
bahut khub likha likhne wale ne
shekhar kumawat
वाह ! अली सरदार जाफ़री जी मेरे शहर बलरामपुर के थे .....अच्छा लगा उनको फिर से पढ़ना .
आनंद !
नज़्म पढ़कर लगा जैसे गुलाब के ताजा पुष्पों पर ओस की बूंदें ढलक आई हो।
इस नज्म से देव फिल्म के एक गीत "जब नहीं आए थे तुम तब भी मेरे पास थे तुम" की याद गई। दोनों में काफी समानताएं हैं।
bahut sundar rachna he maza aagya pad kar
"....कि मेरे पास सिवा मेहरो वफा कुछ भी नहीं ...एक दिल एक तमन्ना के सिवा
कुछ भी नहीं..."
bohot badhiya !
aaj Jagjeet Singh ji ke nidhan pe mujhe ye barbas hi yad ho aaya...
aapka sankalan bahot badhiya hai...
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