Friday, April 2, 2010

जब नहीं आये थे तुम...

जब नहीं आये थे तुम
तब भी तो तुम आये थे...
आंख में नूर की और
दिल में लहू की सूरत
याद की तरह धड़कते हुये
दिल की सूरत
तुम नहीं आये अभी
फिर भी तो तुम आये हो
रात के सीने में
महताब के खंजर की तरह
सुबह के हाथ में
खुर्शीद के सागर की तरह .
तुम नहीं आओगे जब
फिर भी तो तुम आओगे
ज़ुल्फ़ दर ज़ुल्फ़ बिखर जायेगा
फिर रात का रंग
शबे -तनहाई में भी
लुत्फ-ए-मुलाकात का रंग।
आओ, आने की करें बात
कि तुम आये हो...
अब तुम आए हो तो
मैं कौन सी शय नज्र करूं
कि मेरे पास
सिवा मेहरो वफा कुछ भी नहीं
एक दिल एक तमन्ना के सिवा
कुछ भी नहीं
एक दिल एक तमन्ना के सिवा
कुछ भी नहीं...
- अली सरदार जाफरी

13 comments:

अनिल कान्त said...

आपके पास लाजवाब खज़ाना है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपने बढ़िया गजल लगाई है!
लेकिन कुछ अपना खजाना भी तो प्रकाशित कीजिए!

Udan Tashtari said...

आभार इसे पढ़वाने का.

Yunus Khan said...

ये गजल नहीं नज्‍म है । और ये कैफी की नहीं अली सरदार जाफरी की नज्‍म है ।

Pratibha Katiyar said...

भूल सुधार- यह नज़्म सरदार जाफरी की है. युनुस जी शुक्रिया!

Shekhar Kumawat said...

wow





bahut sundar rachna he maza aagya pad kar

http://kavyawani.blogspot.com/

shekhar kumawat

Shekhar Kumawat said...

कुछ भी नहीं
एक दिल एक तमन्ना के सिवा


bahut khub likha likhne wale ne


shekhar kumawat

सुशीला पुरी said...

वाह ! अली सरदार जाफ़री जी मेरे शहर बलरामपुर के थे .....अच्छा लगा उनको फिर से पढ़ना .

siddheshwar singh said...

आनंद !

Akhilesh Shukla said...

नज़्म पढ़कर लगा जैसे गुलाब के ताजा पुष्पों पर ओस की बूंदें ढलक आई हो।

Rangnath Singh said...

इस नज्म से देव फिल्म के एक गीत "जब नहीं आए थे तुम तब भी मेरे पास थे तुम" की याद गई। दोनों में काफी समानताएं हैं।

संजय भास्‍कर said...

bahut sundar rachna he maza aagya pad kar

smilekapoor said...

"....कि मेरे पास सिवा मेहरो वफा कुछ भी नहीं ...एक दिल एक तमन्ना के सिवा
कुछ भी नहीं..."
bohot badhiya !
aaj Jagjeet Singh ji ke nidhan pe mujhe ye barbas hi yad ho aaya...
aapka sankalan bahot badhiya hai...