Wednesday, March 26, 2025

मनोकामिनी सा मन



बीतती नहीं वो रात 
जब आसमान झील में औंधा पड़ा था 
और जुगनू हमारे साथ 
झील में पड़े सितारों से बतिया रहे थे 

हवाओं में एक खुनक थी 
और तुमने मेरी देह पर 
ख़ामोशी की चादर लपेट थी 

तुम्हारी आँखों से सारा अनकहा 
मनोकामिनी की ख़ुशबू सा झर उठा था 
झील की सतह पर हवाएँ नृत्य कर रही थीं 
जैसे नृत्य करती है स्त्री की अभिलाषा 

हमने साँसों के सम पर मुस्कुराहटें पिरो दीं थीं 
सितारों भरा आसमान 
आसमान काँधों से आ लगा था

कोई तारा टूटने नहीं दिया तुमने उस रोज 
कि हर ख़्वाब को आहिस्ता से सहेज लिया 

इन जिये हुए लम्हों ने दुनिया संभालने की ताक़त दी है 
इन उम्मीद भरे लम्हों ने मज़लूमों का साथ देने 
और मगरूर शासक से आँख मिलाने की हिम्मत दी है 

हाँ, प्रेम जरूरी है दुनिया को सुंदर बनाने के लिए 
इंसानियत में आस्था बनाए रखने के लिए। 

3 comments:

Priyahindivibe | Priyanka Pal said...

सुंदर रचना

Priyahindivibe | Priyanka Pal said...

सुंदर अभिव्यक्ति

Bharti Das said...

बहुत खूबसूरत रचना