इन दिनों ज़िन्दगी जिस मोड़ पर ले आई है...वहां से पीछे छूट गये को देखना साफ़ हो गया है और आगत को लेकर बेसब्री कम हो गयी है. सवाल अब भी साथ रहते हैं लेकिन अब वो चुभते नहीं. उन्हीं सवालों के भीतर छुपे उनके जवाब दिखने लगे हैं. जैसे हिंसा जब सवाल के रूप में सामने आती है तो प्रेम उसके भीतर छुपे जवाब के तौर पर स्पष्ट दिखता है. जैसे उदासी के सवाल के भीतर नज़र आती है भीतर की वह यात्रा जो हमें लगातार मांज रही है. नज़र का चश्मा तनिक साफ़ हो गया लगता है. अब गुस्सा कम आता है सहानुभूति ज्यादा होती है.
किसी भी घटना के लिए व्यक्ति को दोषी के तौर पर देख पाना कम हुआ है दोषी व्यक्ति के निर्माण की प्रकिया को बेहतर कर पाने का दायित्वबोध बढ़ा है. एक चुप के भीतर छुपकर रहना सुकून देता है. जाने क्यों दुनिया के हर मसायल का एक ही हल नज़र आता है, वो है प्रेम. कि सारी दुनिया अगर प्रेम में डूब जाए तो सब कुछ कितना आसान हो जायेगा. फिर चारों तरफ होने वाले ज़हरीले संवादों के बाण बेधते हैं तो सोचती हूँ इस दुनिया में कितने सारे लोग प्रेम विहीन हैं देखो न...कि इनके भीतर हिंसक होने की जगह इस कदर बची हुई थी. जो होता प्रेम तो ये आरोप प्रत्यारोप के बजाय निरंकुश अट्टहास के बजाय हर दुखी उदास व्यक्ति को आगे बढ़कर गले से लगा लेते बिना पूछे जाति, धर्म देश. क्योंकि प्रेम तो ऐसा ही होता है. एक बार दिल प्रेम से भर उठे तो आप जीवन में कभी किसी से नफरत कर ही नहीं सकेंगे. अगर भीतर किसी भी किस्म की हिंसा, क्रोध, द्वेष शेष है तो यक़ीनन प्रेम दूर है आपके जीवन से. वो जिसे प्रेम समझे बैठे रहे अब तक वो कुछ भी था सिवाय प्रेम के.
1 comment:
सुंदर प्रस्तुति
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