Saturday, March 19, 2022

बेआवाज टूटता है कोई दुःख


यूँ ख़ुशी के साथ हल्की उदासी की रेख हमेशा ही चलती है. इन दिनों यह बढ़ गया है. एक युवा अचानक उठकर चल दिया अनंत की यात्रा पर. क्या दुनिया का कोई शब्द, कोई बात उसे जरा भी कम कर पाने में सक्षम है. दुनिया की तमाम इबारतें, तमाम शब्दकोष रुआंसे हैं, मौन हैं, उस दुःख के आगे सजदे में हैं. कोई लौटा नहीं सकता उसे जो अब स्मृति के देश का वासी हो गया है. कितने लम्हे जीने थे अभी साथ में, कितने सपने साथ देखने थे, कितना कुछ था जो छूट गया. जैसे बजते हुए एक मीठा राग अचानक साज बिखर गया, टूट गया. वह राग टूटा ही रहेगा अब.

कितना कुछ होना था इस जीवन में
जो हुआ ही नहीं
कितना कुछ था जो अधूरा छूट गया
कितनी शिकायतें
जिनकी कभी सुनवाई न हुई
कितने रास्ते पथिकों के इंतजार में रहे
कितने सुख रखे-रखे ऊंघते रहे
और एक दिन उनके गालों पर
झुर्रियां उग आयीं
कितनी चुप्पियाँ शब्दों के ढेर के नीचे
बेआवाज कराहती रहीं

कितना कुछ होना था इस जीवन में
जो हुआ ही नहीं
कि ढेर सपने होने थे सबकी आँखों में
प्रेम के, मनुहार के, मेलजोल के
और उनमें झोंक दी गयी हिंसा, घृणा, लिप्सा
कितने कदम चलना था साथ एक लय में
और बिना किसी लय के भागते ही रहे कदम
किसी के दुःख में बैठना था
उसके काँधे से सटकर चुपचाप
और हम तलाशते रहे शब्द
हम एक जरा सी दूरी तय न कर सके
जबकि कोई लांघकर चला गया
समूचा जीवन, समूचा मोह

होना तो यह था कि
उदास हथेलियों को लेकर अपने हाथ में
कोई कहता कि मैं हूँ न...
और सचमुच जीवन में
खिल उठता बसंत इन्हीं तीन शब्दों से
लेकिन तमाम उम्र उम्मीद के
टूटने की आवाजें बटोरने में गुजर गयी
कितना कुछ होना था इस जीवन में
जो हुआ ही नहीं.

1 comment:

Onkar said...

बहुत सुंदर