Saturday, November 7, 2020

कहाँ जाते होंगे वो ख्वाब ...



वो नदी क्या सोचती होगी
जिसमें लहराती मिली थी धानी चुनर
उस किशोरी की
जिसने 15 की उम्र में किया था प्रेम

वो पेड़ कैसा महसूस करता होगा
जिसकी फलों और फूलों से लदी शाख पर
झूल गयी थी वो लड़की
जिसकी नाजुक कलाइयों में
गुलाबी चूड़ियाँ पहनाई थीं
इसी पेड़ के नीचे एक रोज
उसने जिसने प्रेम का नाम लेकर
निचोड़ लिया था उसकी देह को

उस पंखे को कैसा लगता होगा
जिसे ठंडी हवा देने के लिए टांगा गया था
और जिस पर झूल गयी
हरदम मुस्कुराने वाली गृहिणी
जो चौथी बार गर्भ से थी
और नहीं तैयार थी गर्भपात को

वो रेल कैसा महसूस करती होगी
मुसाफिरों को उनके ठीहे पर पहुंचाते हुए
उसके सामने फेंक दिया गया था
एक प्रेमी जोड़ा

नींद की उन गोलियों का क्या
जिन्हें सिर्फ कुछ घंटों को सोने की रियायत
थाम रखी थी अपने भीतर
और ढेर सारी गोलियां निगल कर
हमेशा के लिए सो गयी थी
बेटे के इंतजार से थक गयी बूढी माँ

क्या बातें करते होंगे पेड़, नदी, रेल,
नींद की गोलियां जब मिलते होंगे
कहाँ जाते होंगे वो ख्वाब
जो देखे जाने से पहले रौंद दिए जाते हैं.

3 comments:

शिवम कुमार पाण्डेय said...

बहुत बढ़िया।

ANHAD NAAD said...

नहीं होती कोई अदालतें प्रेम के मसले निपटाने वाली और ना ही समाज सहेज के रखने वाला। अजीब सी खामोशी रहती है। उस खामोशी में ख्वाब गुमा देने पड़ते हैं।

दिव्या अग्रवाल said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 08 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!