Sunday, November 29, 2020

जन्मना हर लम्हा...



जब पहली बार दुनिया में आँख खुली तब का कुछ पता नहीं लेकिन माँ बनने के बाद जब पहली बार आँख खुली तो एक नया जीवन सामने थे. एकदम सलोना जीवन. एक ऐसा जीवन जिसके बारे में देखा सुना पढ़ा खूब था लेकिन जिसे देखा नहीं था. और जब वह जीवन अपनी नन्ही नन्ही कोमल अँगुलियों में मेरी अंगुली को थाम रहा था तो मेरे भीतर एक विशाल झरना फूट पड़ा. यह सुख का झरना था. आँखें भरी हुई थीं. स्तन भी. यह पहली बार था जब रुदन का सुख पसरा हुआ था. यह आज ही के दिन की लेकिन सत्रह बरस पहले की बात है. 

माँ बनना सिर्फ जैविक प्रक्रिया नहीं है. यह एक सृष्टि को जन्म देने की प्रक्रिया है. कि समूचा जीवन किस तरह अपने भीतर साँस लेता है, किस तरह हाथ पाँव मारता है दिल ख़ुशी से झूम उठता है. 

जन्म देने से बड़ी बात है जन्म देने को महसूस करना. गर्भ धारण का सौन्दर्य अद्भुत है. इतना अद्भुत कि इसे महसूस करने को नौकरी चाकरी सब छोड़ दिन भर गर्भस्थ शिशु से बातें करती थी. आज यह गर्भस्थ शिशु मेरी बगल में सोया है. मेरे कद के बराबर हो चला है. लेकिन उसकी अँगुलियों में वही निश्छलता है. उसकी आँखों में वही जीवन. 

अब जब वह वयस्कता की पहली सीढ़ी चढने से सिर्फ एक पादान पहले है मुझे उसकी आँखों में सुंदर दुनिया बनाने का ख़्वाब दिखने लगा है. गलत के खिलाफ उसकी मुठ्ठियाँ भिंचने लगी हैं. Treat People with Kindness...उसका फेवरेट कोट है. मुझे लगता है उसके साथ ने मुझे बेहतर मनुष्य होना सिखाया. धडकनों को गौर से सुनना सिखाया. देर तक ढाई अक्षर के टूटे फूटे शब्दों में उचारे गए 'मम्मा....' में सातों सुरों को एक साथ सधते देखने का सुख दिया. 
उसके सवालों ने मुझे सवाल करना सिखाया, उसके होने ने सिखाया जीना और जीने के लिए संघर्ष करना. 

मैं आज सत्रह बरस की माँ हुई हूँ लगता है इतना ही जीवन है. इन नन्ही अँगुलियों में अगर दुनिया को थमा दें तो दुनिया कितनी मासूम हो जायेगी. इन नन्ही उँगलियों में बची रहे यही मासूमियत तो दुनिया कितनी सुंदर हो उठेगी. बच्चे हमें कितना सिखाते हैं और हम हैं कि इस दर्प से मुक्त ही नहीं होते कि हमने उन्हें पाला है, हमने उन्हें जन्म दिया है जबकि सच यह है कि उन्होंने हमें जन्म दिया है, उन्होंने हमें सिखाया है मनुष्य होना, 

जन्म देना भर जन्म देना नहीं होता...जन्मना होता है हर लम्हे में कुछ नयेपन के साथ, कुछ अनजाने एहसासों के साथ.

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