Sunday, November 8, 2020

जब मिलेंगे तो खिलेंगे



जब सुबह आयेगी
तब नहीं आयेगी सुबह
वो आयेगी जब
तुम्हारे शहर से होकर आयेगी
जब बारिश आयेगी
तब कहाँ आयेगी बारिश
वो तो तब आयेगी
जब साथ बिताये पलों की स्मृतियों से
तर ब-ब-तर हो उठोगे तुम
धूप ठिठकी रहेगी देहरी पर
बस कहने को जरा सी बात
कि तुम्हें छूकर नहीं आ सकी आज
तुम सोये रहे देर तक
और काम पर निकलना था
धूप को
उदास थी वह
उदास दिनों की
उदास कलियो ने
कान में फुसफुसा कर कहा
जब सब बिछड़े लोग मिलेंगे अपनों से
तब हम खिलेंगे संग-संग

5 comments:

ANHAD NAAD said...

Khushamdeed

शिवम कुमार पाण्डेय said...

वाह।

दिव्या अग्रवाल said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 09 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Onkar said...

बहुत सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आसा का संचार करती सुन्दर रचना।