- मृदुला गर्ग
तात्पर्य यह कि फेमिनिस्ट शब्द का जो अर्थ आप लगाते हैं, उस अर्थ में फेमिनिस्ट नहीं हूँ. वह अर्थ क्या है, ठीक से कोई नहीं जानता. वैसे बुध्धिजीवी या प्रबुद्ध कहलाये जाने वाले स्त्री पुरुष, इसके तीन चार मतलब लगाते हैं. पुरुषों से घृणा करने वाली औरत. भदेस वेशभूषा में सज्जित स्त्री. मुंहफट, तेज तर्रार पश्चिम का अनुकरण करने वाली महिला. आप फेमिनिस्ट हुए बिना ये सब कुछ हों या ये सब होते हुए भी फेमिनिस्ट न हों यह बात उनके गले नहीं उतरती.और यह बात तो बिलकुल ही नहीं कि कि फेमिनिज्म का अर्थ है इतिहस और मौजूदा व्यवस्था को परखने-समझने की एक भिन्न जीवनदृष्टि या विश्वदृष्टि.तो देखें कि आखिर हमारे अपने माहौल में फेमिनिस्ट किस शै का नाम है.
मैं समझती हूँ कि फेमिनिज्म का मतलब नारी मुक्ति नहीं, सोच की मुक्ति है. अगर स्त्री मौजूदा राजनितिक आर्थिक नीति और इतिहास को उन मानदंडों के अनुसार परख सकती है, जो उसने खुद ईजाद किये हैं तो वह फेमिनिस्ट है. जरूरी नहीं है कि दुनिया को स्त्री के नजरिये से देखने का काम स्त्री ही करे. पुरुष भी कर सकता है, यानी पुरुष भी फेमिनिस्ट हो सकता है. और यह भी हो सकता है कि पुरुष से हर तरह बराबरी करने वाली महिला फेमिनिस्ट न हो.
मध्य वर्ग की शिक्षित महिलायें पुरुषों के साथ पुरुष बहुल क्षेत्रों में पुरुषों द्वारा मान्यता प्राप्त मूल्यों के अनुरूप काम करने से नहीं डरतीं. वे डरती हैं मुक्त चिन्तन से. नए मूल्यों की स्थापना से. पारम्परिक सोच के सहारे को छोड़कर उन्मुक्त खड़े होने से.
मैं फेमिनिस्ट नहीं हूँ कहने की बजाय अगर हमारी प्रबुद्ध महिलाएं यह कहें कि ‘हाँ मैं फेमिनिस्ट हूँ पर देसी’ तो बेहतर होगा. उसका मतलब होगा कि उनकी दिलचस्पी कामकाजी औरतों में, पर्यावरण में भागीदारी सीखने में, देश की नीति में परिवर्तन लाने में है, जो पर्यावरण का स्थायी और संतुलित रूप से रहने पोषण कर सकें.
मैं समझती हूँ, फेमिनिस्ट होने को नारी मुक्ति के रूप में न देखकर नारी दृष्टि के रूप में देखना चाहिए.
मैं फेमिनिस्ट नहीं हूँ कहने की बजाय अगर हमारी प्रबुद्ध महिलाएं यह कहें कि ‘हाँ मैं फेमिनिस्ट हूँ पर देसी’ तो बेहतर होगा. उसका मतलब होगा कि उनकी दिलचस्पी कामकाजी औरतों में, पर्यावरण में भागीदारी सीखने में, देश की नीति में परिवर्तन लाने में है, जो पर्यावरण का स्थायी और संतुलित रूप से रहने पोषण कर सकें.
मैं समझती हूँ, फेमिनिस्ट होने को नारी मुक्ति के रूप में न देखकर नारी दृष्टि के रूप में देखना चाहिए.
(सामयिक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'चुकते नहीं सवाल' के एक आलेख देसी फेमिनिस्ट के कुछ फुटकर अंश...)
3 comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुन्दर
Oh, totally makes sense!! आपत्ति की बात(?) है कि feminism शब्द का प्रयोग आपने जिन मुद्दों के लिए लिखा है, वहीं होता रहा है। कई प्रबुद्ध महिलाओं से सुन चुकी हूं;फेमिनिस्ट होने के लिए आजकल बहुत कुछ ज़रूरी हो गया है....
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