ये जो झड़ रहा है ये कौन हैं, ये जो उग रहा है ये कौन है, भोर की पोर-पोर में किसकी नींद जागती है, वो जो भागता फिरता है बेसबब, वो किसका ख्वाब है आखिर, वो जो खाली हथेलियों में ठहरा हुआ है किसका एहसास है.
वो जो पलकों के पीछे से छुपके ताकता रहता है वो कौन है, वो कौन है जो आस पास बिखरी तमाम किताबों, ग़ज़लों,अधूरी कविताओं, किस्सों को लांघकर सारी रात नींद की पंखुड़ियां तोड़ता रहता है.…कौन है जो बेहद मासूमियत से सूरज को ओस की बूंदों का तोहफा देता है.
चैत की रातें अधूरी बातों, मुलाकातों को सीने की मुकम्मल कोशिश करती हैं.…
2 comments:
और साथ होते हैं उसके अहसास इन मुकम्मल कोशिशों के … बहुत खूबसूरत अहसास … आभार
सुन्दर प्रस्तुति
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