हाथ से छूके इसे रिश्तो का इल्जाम ना दो
सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो
प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज नहीं
एक खामोशी है सुनती है कहा करती है
न ये बुझती है, न रुकती है, न ठहरी है कही
नूर की बूँद है, सदियों से बहा करती है
मुस्कराहट सी खिली रहती है आँखों में कही
और पलको पे उजाले से झुके रहते हैं
होंठ कुछ कहते नहीं, कापते होठों पे मगर
कितने खामोश से अफसाने रुके रहते हैं...
3 comments:
mera pasandida geet
bahut badhiya
Waah pyar ko pyar rahne do koi naam na do....bahut khubsurat prastuti...!!
बहुत नाज़ुक अहसासों के साथ लिखी रचना
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