Saturday, September 6, 2014

जीने की इच्छा का ताप...




गणित के पास नहीं है
जीवन के सवालों के हल
इसलिए अपने सवालों के साथ
बैठना किसी नदी के किनारे
या खो जाना किसी रेवड़ में

बीच सड़क पे नाचने में भी कोई उज़्र नहीं
न जुर्म है आधी रात को
जोर से चिल्लाकर सोये हुए शहर की
नींद उखाड़ फेंकने में

बस कि खुद को पल पल मरते हुए
मत देखना चुपचाप
अपना हाथ थामना ज़ोर से
और जिंदगी के सीने पे रख देना
जीने की इच्छा का ताप

जिंदगी धमनियों में बहने लगेगी
आहिस्ता आहिस्ता,,,


5 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
गुरु कैसा हो !
गणपति वन्दना (चोका )

संजय भास्‍कर said...

बहुत उम्दा शब्द चयन..... आखिरी के ये दो शब्द तो बस निशब्द कर गए .....

वाणी गीत said...

जिंदगी गणित है खुद अपने बनाये नियमों का।
जीयो भरपूर !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जीवन के सवालों का उत्र जीवन यापन करते हुए ही मिल जायेगा कभी।
--
सुन्दर अभिव्यक्ति।

दिगम्बर नासवा said...

जिंदगी के सवाल खुद ही हल किये जाते हैं ... अपना ताप खुद ही बढ़ाना होता है ... गहरे भाव लिए शशक्त रचना ...