मौन की जमीन पर
भी उग ही आते हैं प्रतिरोध के बीज
आसमान के पल्लू में बांधकर रखी गयी
तमाम खामोशियाँ
लेने लगती हैं आकार
धरती से आसमान तक
बरपा होने लगता है
चुप्पियों का शोर
अब नहीं, अब और नहीं
नहीं चलेगी अब कोई संतई
नहीं सेंकने देंगे सत्ता की रोटियां
हमारे जिस्मों की आंच पर
नहीं बहने देंगे एक भी बूँद खून
न सरहद पर, न सरहद पार
न, कोई सफाई नहीं देंगे हम
दुनिया के हाकिमों,
खोलो अपनी जेलों के दरवाजे
ठूंस दो दुनिया की तमाम हिम्मतों को
जेलों के भीतर
आम आदमी की चेतना का सीना
तुम्हारे आगे है.…
रंग कोई नहीं है हमारे झंडों का
बस कि रगों में दौड़ते खून का रंग है लाल.….
अब नहीं, अब और नहीं
नहीं चलेगी अब कोई संतई
नहीं सेंकने देंगे सत्ता की रोटियां
हमारे जिस्मों की आंच पर
नहीं बहने देंगे एक भी बूँद खून
न सरहद पर, न सरहद पार
न, कोई सफाई नहीं देंगे हम
दुनिया के हाकिमों,
खोलो अपनी जेलों के दरवाजे
ठूंस दो दुनिया की तमाम हिम्मतों को
जेलों के भीतर
आम आदमी की चेतना का सीना
तुम्हारे आगे है.…
रंग कोई नहीं है हमारे झंडों का
बस कि रगों में दौड़ते खून का रंग है लाल.….
7 comments:
प्रतिपग प्रतिरोध,
प्रतिपल प्रतिशोध।
khub
बहुत खूब ...
जोश भरती पंक्तियाँ !
बेहद सुंदर...सार्थक रचना...
बेहतरीन प्रस्तुति
How to repair window 7 and fix corrupted file without using any software
बहुत खूबसूरत रचना
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