टूटते हैं कांच के बर्तन,
फर्श पर फेंके जाते हैं 
मोबाईल, कैमरे 
घडी, रिमोट
शो पीस, महीन कारीगरी वाले बुध्ध 
खींच के फेंक दिए जाते हैं 
परदे , बेडशीट 
फिर भी बचा रहता है कुछ 
बचाने को 
बचे रहते हैं बर्तन 
मोबाईल, रिमोट 
परदे, महंगी पेंटिंग 
और सब कुछ
लेकिन बचाने को 
नहीं बचता कुछ भी....
 
 
4 comments:
गहरी..कहाँ जगत से मोह लगाया।
अत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
आपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 16-08-2013 के .....बेईमान काटते हैं चाँदी:चर्चा मंच 1338 ....शुक्रवारीय अंक.... पर भी होगी!
अतिसुन्दर ,स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
बहुत सुंदर
अच्छी रचना
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