Sunday, August 18, 2013

तुमसे ही होती है गुलज़ार जिंदगियां...




प्यार के आँगन में गिरा था जो पहला ख़त
वो तुम्हारा था
ज़ेहन के दरीचों में ज़ज्ब हुई थी जो आवाज
वो तुम्हारी थी
सिरहाने झरती थीं जो शबनमी रातें
वो सौगात तुम्हारी थी
चाँद से दिल लगाना
हवाओं को पहनना कानों में
बांधना ख्वाबों की पाजेब,
उड़ते फिरना आसमान के आखिरी छोर तक
सब सिखाया तुमने
गुलज़ार कहते हैं लोग तुमको

कि तुमसे ही होती है गुलज़ार जिंदगियां
जन्मदिन मुबारक हो गुलज़ार साब!

5 comments:

rashmi ravija said...

बड़ी प्यारी सी नज़्म है...सच है, एक पूरी पीढ़ी ने कुछ अहसासों को गुलज़ार की नज्मों में डूबकर ही पहचाना है .

दीपक बाबा said...

@उड़ते फिरना आसमान के आखिरी छोर तक
सब सिखाया तुमने
गुलज़ार कहते हैं लोग तुमको


बेहतरीन नज़्म...

वाक़ई गुलजार साहेब ने एक पूरा का पूरा युग ही गुलज़ार कर दिया.

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह बहुत खूब

Shekhar Suman said...

गुलज़ार अपने आप में एक अलग दुनिया हैं... :)

प्रवीण पाण्डेय said...

जन्मदिन की शुभकामनायें..