Wednesday, January 5, 2011

चाँद मद्धम है आस्माँ चुप है




 चांद मद्धम है आस्माँ चुप है
नींद की गोद में जहाँ चुप है

दूर वादी में दूधिया बादल,
झुक के परबत को प्यार करते हैं
दिल में नाकाम हसरतें लेकर,
हम तेरा इंतज़ार करते हैं

इन बहारों के साए में आ जा,
फिर मोहब्बत जवाँ रहे न रहे
ज़िन्दगी तेरे ना-मुरादों पर,
कल तलक मेहरबाँ रहे न रहे

रोज़ की तरह आज भी तारे,
सुबह की गर्द में न खो जाएँ
आ तेरे गम़ में जागती आँखें,
कम से कम एक रात सो जाएँ

चाँद मद्धम है आस्माँ चुप है
नींद की गोद में जहाँ चुप है...

- साहिर लुधियानवी

8 comments:

Rangnath Singh said...

बहुत ही सुंदर।

प्रवीण पाण्डेय said...

शान्ति और प्रेम जनती पंक्तियाँ।

नीरज गोस्वामी said...

साहिर का कलाम...उफ्फ्फ...तौबा...


नीरज

अमिताभ मीत said...

यहाँ जाने का कष्ट ज़रूर करें ...... अगर इस जादू दो दूना करना हो .....................

http://kisseykahen.blogspot.com/2009/08/blog-post.html

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

मेरे महबूब शायर का कलाम है।


आभार

Ashok Kumar pandey said...

वाह! बहुत शानदार…मीत साहब ने भी मज़ा दुगना कर दिया…दोनों का आभार

संजय भास्‍कर said...

एक उम्दा प्रस्तुति।
........खूबसूरत और भावमयी

siddheshwar singh said...

कितनी - कितनी यादे जुड़ी हई इन पंक्तियों के साथ!
शुक्रिया!!