Friday, December 11, 2009

कुछ सूखी, कुछ गीली हँसी

तुम्हें सरगम का कौन सा सुर सबसे ज्यादा पसंद है? लड़के ने पूछा. लड़की मुस्कुराई...ठहर गई...फिर कुछ सोचते हुए आगे की ओर बढ़ चली।
नहीं बताऊंगी...कहकर खिलखिलाते हुए वह भागती गई...भागती गई...
उसकी आवाज में तमाम शोखी, शरारत हसरतें घुलने लगीं. उसकी हंसी में पलाश खिलने लगे...सरसों फूलने लगी...नदियां लहराने लगीं...उस हंसी में कोयलों की कूक थी...पपीहे की पीऊ थी...मौसम टुकुर-टुकुर लड़की को देख रहा था। लड़की का बचपन भी उसकी हंसी में जा मिला था. किलकारी सी मालूम होती थी वो हंसी. हंसी ही हंसी....चारों तरफ हंसी के फूल खिल उठे थे। लड़का बड़े असमंजस में था. वहीं खड़ा रहा वो देर तक. उस हंसी के अर्थ ढूंढने की कोशिश में।
उस नहीं बताऊंगी...में उसने क्या बताना चाहा यह जानने के फेर में. लेकिन उसे कुछ खास समझ में नहीं आया. सर खुजलाते हुए, पलकें झपकाकर वह बस इतना बुदबुदाया, पागल ही होती हैं सारी लड़कियां....इन्हें कोई समझ नहीं सकता. कभी तो खूब हंसने वाली बात पर भी ऐसी मरियल सी हंसी आती है चेहरे पर, जैसे एहसान उतार रही हों और कभी बिना बात के ही हंसी का खजाना लुटाया जा रहा है. लड़के को समझ में नहीं आता कि कब लड़कियों की चुप्पी आवाज बन जाती है और कब दर्द हंसी...कब वह बोल बोलकर अपनी खामोशी को सुरक्षित कर लेती हैं और कब रो-रोकर मन को खाली कर रही होती हंै. बड़ी पहेली है यह तो।
अचानक लड़का चौकन्ना हो उठा. उसे लगा लड़की को इस तरह हंसते देख कोई न$जर न लगा दे उसे. वह तेज कदमों से बढ़ा उसकी ओर।
ठहरो...अरे, सुनो तो...रुक जाओ ना...वो आवाजें दे रहा था।
लड़की भागती जा रही थी...लड़का भी भागता जा रहा था...
लड़की की खिलखिलाहटें बढ़ती ही जा रही थीं. लड़की कभी-कभी ही हंसती है और तब उस हंसी में न जाने कितना खालीपन, दर्द, अवसाद सब तैर जाते हैं. कभी भीगती, कभी सूखती, गुमसुम कभी तो कभी लगता हरसिंगार अकोर के बिखरा दिये गये हों उस हंसी के बहाने. आज उसकी हंसी हरसिंगार बनके बिखर रही थी...लड़का उसके पीछे भागते-भागते अब थकने लगा था।
तभी आसमान बादलों से भरने लगा. न जाने कैसे बेमौसम बरसात शुरू हो गई. लड़की आसमान की ओर मुंह करके मुक्त होकर नाच रही थी कि टप्प से एक बूंद पड़ी उसके माथे पर. वह मुस्कुरा उठी. लड़का घबरा गया. बारिश आ गई...भागो...जल्दी...भीग गई तो बीमार पड़ जाओगी...
लड़का बूंदों से बचने के लिए भाग रहा था।
बच्चे भाग रहे थे...
गैया भी चल पड़ी थी पेड़ की तलाश में...
बछड़ा भी...
सड़क पर चलते लोग भी...
सब भाग रहे थे।
लेकिन लड़की...वो अब ठहर गयी थी. बूंदों को वो अपने आंचल में भर रही थी कि बारिश उसे अपने आगोश में ले रही थी कह पाना मुश्किल था. लड़की बारिश हो गई थी...बारिश लड़की हो गई थी. टिप्प...टिप्प...टिप्प...वह भीग रही थी. तन से...मन से... उसका शरीर पिघल रहा था. बारिश की बूंदों के साथ उसने खुद को भी बहते हुए महसूस किया।
लड़का अब घबराने लगा था. ये सुन क्यों नहीं रही।
वापस आ जाओ...घर जाना है...देर हो रही है... अब मत भीगो...तुम्हें सर्दी लग जाएगी...बीमार पड़ जाओगी...लड़का बोले जा रहा था।
लड़की सुन रही थी, टिप..टिप...टिप...थोड़ी देर में बारिश थम गई. लड़के ने लड़की की बांह जोर से पकड़ते हुए गुस्से में पूछा, पागल हो गई हो...? कोई ऐसे भीगता है क्या॥?
लड़की मुस्कुरा दी।
नहीं भीगता तभी तो जीवन भर सूखा ही रहता है. किसी भी चीज को पाने के लिए उससे एकसार होना पड़ता है। अब मैं बारिश बन चुकी हूं. पानी ही पानी...मेरे मन का कोना-कोना भीग चुका है. और तुम? लड़का अचकचाया. क्या बेवकूफी है? चलो घर चलो. लड़के ने कहा।
सुनो...लड़की ने कहा. तुम्हारे सवाल का जवाब देती हूं. सरगम के सातों स्वरों में से मुझे सबसे ज्यादा पसंद है पंचम. प से पंचम, प से प्राण, प से प्यास, प से पानी प से प्यार...स से नी तक जाते हुए पंचम पर ठहर ही जाता है मेरा मन. सबसे सुंदर सुर है पंचम...लड़की अब भी मुस्कुरा रही थी।
लड़का अब तक अपने सवालों के षडज यानी स में उलझा खड़ा था.

11 comments:

vandana gupta said...

behtreen...........bahut hi sundar.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत ही सुंदर चित्रण। बधाई स्वीकारें।
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सलीम खान का हृदय परिवर्तन हो चुका है।
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुनो...लड़की ने कहा. तुम्हारे सवाल का जवाब देती हूं. सरगम के सातों स्वरों में से मुझे सबसे ज्यादा पसंद है पंचम. प से पंचम, प से प्राण, प से प्यास, प से पानी प से प्यार...स से नी तक जाते हुए पंचम पर ठहर ही जाता है मेरा मन. सबसे सुंदर सुर है पंचम...लड़की अब भी मुस्कुरा रही थी।
लड़का अब तक अपने सवालों के षडज यानी स में उलझा खड़ा था.

बहुत सुन्दर!

Swapnrang said...

कब लड़कियों की चुप्पी आवाज बन जाती है और कब दर्द हंसी...कब वह बोल बोलकर अपनी खामोशी को सुरक्षित कर लेती हैं और कब रो-रोकर मन को खाली कर रही होती हंै. बड़ी पहेली है यह तो।
ladki ko ek sur pyara hai.is sunder lekh mein puri sargam smahit hai

rohit said...

Ladkiyaa har rang mein ase hi bhigti hai

महुवा said...

आहा....:-)

KK Mishra of Manhan said...

मैडम जी पलाश खत्म हो रहे हैं हमारी धरती से, फ़िर लोगो की हंसी में पलाश कैसे झरें गे ये तो बेमानी होगा

Anonymous said...

पलाश खिलना तो एक किताबी बात हो जायेगी

Pratibha Katiyar said...

सभी दोस्तों का शुक्रिया.
मिश्रा जी, जब पलाश धरती पर खत्म हो रहे हैं तब तो और जरूरी है मन की धरती पर उन्हें उगाना. वैसे, हमारे यहां तो खूब खिलते हैं पलाश...अब भी...

akanksha said...

बहुत ही अच्छा है। हर शब्द प्यार में भीगा

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में