हम लड़ेंगे साथी
उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी
गुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी
$िजंदगी के टु़कड़े।
कत्ल हुए जज़्बात की कसम खाकर
बुझी हुई न$जरों की कसम खाकर
हाथों पर पड़ी गांठों की कसम खाकर
हम लड़ेंगे साथी...
जब बन्दूक न हुई
तब तलवार न हुई
तो लडऩे की लगन होगी
लडऩे का ढंग न हुआ
लडऩे की $जरूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी....
हम लड़ेंगे क्योंकि
लडऩे के बगैर कुछ भी नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
क्योंकि अभी तक हम लड़े क्यों नहीं .....
- पाश
9 comments:
hum chunenge zindgi k tukre...vakai, phir kiski himmat h jo zorshahi chale ske hmari zindgi pr...
बहुत खुब। लाजवाब प्रेणना से लवरेज सुन्दर रचना। बधाई
हम लडेंगे साथी ...कहाँ तक लडेंगे जी ..
अच्छी प्रेरक कविता..
आपकी लेखनी को मेरा नमन स्वीकार करें.
nazim hikmat ki itni sundar kavita ke liye hardik aabhar.........
Jeene ke liye ladna to padaga
sunder rachna
Rohit Kaushik
ye Avtar singh Pash kee likhee kavita hai, nizaam hikmat kee nahee, agar meree yaadaast theek hai to?
हम लड़ेगें क्या बात है.
लड़ ही तो रहे हैं ये जंग बाहरी ही नही भीतरी भी है.
उर्दू के किसी शाइर की लाज़बाब पंक्तियां याद दिलादीं आप ने-
इज़्ज़त से वो जीने की हक़दार नहीं होती.
जिस कोम के हाथों में तलवार नहीं होती.
हमारे सूरत के गुजराती भाषा के मश्हूर व मर्हूम
शायर मरीज़ ने फ़र्माया है-
कहो दुश्मन ने दरिया जेम हो पाछो ज़रूर आवीश,
ए मारी ओट जोइ ने किनारे घर बनावे छे.
अर्थात हमारे दुश्मन से कहो कि मैं समन्दर की तरह वापिस ज़रूर आऊँगा वो मेरी ओट आने पर किनारे घर बना रहा है.
आपकी जुझारू पंक्तियां इस मायूसी के दौर में हम ग़मनशीनों में जान फूंकेंगी.
अल्लाह करे ज़ोरे कलम और ज़्यादा. बयान ज़ारी रहे. आमीन.
this poem is written by awtar singh pash.
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