मुझे एक सीढ़ी की तलाश है
सीढ़ी दीवार पर चढऩे के लिए नहीं
बल्कि नींव में उतरने के लिए
मैं किले को जीतना नहीं
उसे ध्वस्त कर देना चाहता हूं।
- नरेश सक्सेना
सीढ़ी दीवार पर चढऩे के लिए नहीं
बल्कि नींव में उतरने के लिए
मैं किले को जीतना नहीं
उसे ध्वस्त कर देना चाहता हूं।
- नरेश सक्सेना
7 comments:
कविता तो अच्छी है, लेकिन ऐसी चाहत क्यों।?
बिलकुल सही आज कल लोग मृगतृ्श्ना के आकाश पर विचरने के लिये अपनी जडों से कट लगे हैं। ये उन्नती किस काम की जो आदमी अपने वज़ूद को भी भूल जाये बहुत सुन्दर कविता है शुभकामनायें
बहुत गहरी रचना. सक्सेना जी को पढ़वाने का आभार.
बहुत ही सुन्दर बात कही है आपने /वक्त है जमीन से जुडने की न की हवा मे उड्ने की/चेतना को जगाती रचना/बधाई!
वाह क्या बात है ...इरादा तो नेक है
सही लाइनें हैं
कविता तो अच्छी है, लेकिन....
खग की भाषा खग ही जाने!
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