Monday, March 2, 2009

एक दिन

प्यार
पीड़ा ही छोड़ जाता है एक दिन
इस पीड़ा को अर्थ देने में
फ़िर बीतती है जिंदगी
धूप की, फूल की
हलकी उड़ती हवा की
भाषा समझ में आने लगती है
प्यार तरह-तरह से
उद्भाषित होता है
डूब जाता है शब्द
अर्थ में.....

2 comments:

रोशन प्रेमरोगी said...

well, shabdon me bahut dard hai, lekin chot kab lagi, dost hone ke bavjood mujhe pata nahi chala

Dr. Amarjeet Kaunke said...

really ur writing is very sensetive n beautiful..........amarjeet kaunke