कमजोरियां
कमजोरियां
तुम्हारी कोई नहीं थीं
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार...
सुख
सुबह खिड़की से बाहर का नजारा
फिर से मिली हुई
पुरानी किताब
उल्लसित चेहरे
बर्फ, मौसमों की आवाजाही
अखबार, कुत्ता,
डायलेक्टिक्स,
नहाना, तैरना, पुराना संगीत
आरामदेह जूते
जज्ब करना नया संगीत
लेखन, बागवानी मुसाफिरी
गाना मिलजुल कर रहना...
3 comments:
आपने तो पूरा गुलशन बना के रखा है, मैं आते रहने की कोशिश karoonga.
आपके ब्लाग पर बर्तोल्त ब्रेख्त को पढने के बाद मेरा भी दिल कुछ कहने को आतूर हो रहा है-
अभी तो धूप निकलने के बाद सोया है
तमाम रात तुझे याद करके रोया है
रगों में दौड गयी बनके लहू हर चाहत
ये किसने दामने अहसास को भिगोया है।
all entrise are good....
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