Wednesday, December 10, 2025

सामाजिक विभेद और प्रेम का ताना बाना है कबिरा सोई पीर है- पूरन जोशी


प्रतिभा कटियार जी का हाल में प्रकाशित उपन्यास 'कबिरा सोई पीर है' अक्टूबर में पढ़ा. तब इसको ट्रेन में देहरदून से दिल्ली जाते समय एक ही रीडिंग में पढ़ लिया था. उपन्यास को अगर एक पंक्ति में बताने को कोई कहे तो मैं कहूँगा भारतीय समाज का सदियों पुराना सच (सामाजिक भेदभाव)और उसके साथ समकालीन विमर्श युवाओं के वर्तमान संघर्ष. उपन्यास में तृप्ति है, अनुभव है साथ में पूरा जीवन है, इस जीवन के सच हैं.

उपन्यास का ज्यादातर हिस्सा ऋषिकेश नगर में घटित होता है. बहुत महत्वपूर्ण बात जो है गंगा नदी यहाँ एक नदी मात्र नहीं बल्कि एक पूरा कैरेक्टर है जो अनुभव और तृप्ति की राजदार है, उनके दुखों को सुनती है और उनको साहस भी देती है. उपन्यास के आखिर में भी एक नदी ही नायिका की दोस्त है लेकिन यहाँ वो ऋषिकेश की गंगा नहीं पहाड़ों की पिंडर उसकी सहेली उसकी राजदार है. नदियों और प्रकृति को दोस्त प्रतिभा कटियार ही बना सकती है. मुझे याद है एक बार देहरादून में उन्होंने कहा था कि अल्मोड़ा से क्या लाये तुम कोई पत्थर, कोई पत्ता कोई फूल? कुछ तो लाते!

'कबिरा सोई पीर है' हमारे समय की सामाजिक विडम्बनाओं को बेहद संवेदनशील दृष्टि से उजागर करता है। इसमें जाति-आधारित भेदभाव, वर्गीय असमानताएँ और मनुष्य की आंतरिक पीड़ाएँ सहज रूप से सामने आती हैं। यह उपन्यास परंपरागत ढंग से आगे बढ़ने वाली लंबी कथा नहीं है, बल्कि कई स्वतंत्र किंतु आपस में जुड़ी हुई कहानियों का संगठित रूप है। हर कहानी समाज के किसी अलग पहलू को सामने लाती है और पाठक को यह महसूस कराती है कि आज का मनुष्य किन-किन स्तरों पर टूटता, जूझता और उम्मीद बनाए रखने की कोशिश करता है। प्रतिभा जी की रचनायें हमेशा उम्मीद की रचनायें रहीं हैं मेरे लिए. पहली रचना उनकी 'अहा जिंदगी' पत्रिका में पढ़ी थी. तब उनसे मिला नहीं था. आज जब उनका ये उपन्यास पढ़ा , इस मध्य उनकी कविता, उनका रूसी कवि मारिना पर लिखा ग्रन्थ और भी बहुत कुछ पढ़ता रहा.

उपन्यास के प्रत्येक पाठ का अंत एक शेर के रूप में होता है जो बहुत सुंदर और अपने आप में अनूठा है. युवा मन को टोहता ये उपन्यास कई उतार चढ़ावों से गुजरता हुआ बहुत सारे सवाल छोड़ जाता है. उपन्यास में तृप्ति और अनुभव तो हैं ही एक और कहानी चलती है कनिका और सुधांशु की दोनों कहनियाँ बिलकुल अलग हैं लेकिन लोग जुड़े हैं. इसलिए ये उपन्यास एक तरफ समाजिक भेद को दिखाता है दूसरी ओर बिना रक्त सम्बन्ध के एक दूसरे से जुड़े लोगों को.

युवाओं को यह उपन्यास जरूर पढ़ना चाहिए. वैसे आजकल पढ़ने के लिए बहुत कुछ है लेकिन जिस तरह सरल,सहज शब्दों में सत्य को सामने रखने का साहस लेखिका करती है उसके लिए वे बधाई की पात्र हैं.

No comments: