Monday, April 21, 2025

मेरे भीतर पाखंड भरा है



'मैं ख़ुद के भीतर चल रही इस उलझन को समझ नहीं पा रहा हूँ तृप्ति। मुझे लगता था मैं काफी लिबरल हूँ, लेकिन इस एक घटना ने मेरी अब तक अपने बारे में बनाई गई राय को खंडित कर दिया। मुझे महसूस हुआ कि मेरे भीतर काफी पाखंड भरा है, लिबरल होने का पाखंड। मैं आम आदमी ही हूँ, आम पुरुष, बल्कि उनसे भी बुरा। क्योंकि मैंने अपने भीतर लिबरल होने का झूठ पाल रखा है।'
 
कबिरा सोई पीर है • प्रतिभा कटियार
#साथजुड़ेंसाथपढ़ें #लोकभारतीप्रकाशन

1 comment:

Onkar said...

सुंदर प्रस्तुति