- सुरेखा भनोट
इंतजार के बाद आ ही गया 'कबिरा सोई पीर है' मेरे हाथों में भी। और एक ही दिन में चार बार शांत वातावरण ढूंढकर इस बेहद सुंदर कृति को पढ़ लिया। पूरा दिन तृप्ति ,अनुभव ,सीमा, कनिका,उनके परिवारजन, उनके संघर्ष, अन्तर्द्वन्द महसूस करती रही। प्रतिभा, तुमने प्रत्येक पात्र जो विविध मानसिकता, विभिन्न परिस्थितियों में जी रहे हैं, अपने संघर्ष, अन्तर्द्वन्द के साथ, उनके आपसी संबंधों को कुछ ऐसा गढ़ा है कि हम हर पात्र को बिना किसी मूल्यांकन के समझ पाते हैं। इन पात्रों के माध्यम से तुमने बेबाक उभारा है जाति का दंश, दंभ, पितृसत्ता की साजिश, स्त्री की निरहिता , सामाजिक विषमताएं।
भाषा बहुत सुंदर ,सरल कवितामय है। हर प्रसंग एक उपयुक्त शेर से शुरू होता है, अंत में पूरा शेर। यह शैली मुझे बहुत रास आई। ऋषिकेश शहर, उसमे बहती गंगा का विवरण और उसका सबके साथ एक अपना ही प्यार सा रिश्ता है जो भी मन को छू जाता है।
प्रतिभा का कवि मन, उसकी कल्पना, प्रकृति के साथ तादात्म्य झलकता है पूरे उपन्यास में। कनिका और तृप्ति की दोस्ती स्वयं प्रतिभा के अनन्य लोगो के साथ खूबसूरत दोस्ती की झलक है। ये किताब तो बार-बार, कोई भी पृष्ठ खोलकर स्वयं को , समाज को सुंदर, भरोसेमंद बनाने के लिए प्रेरित करेगी, मार्गदर्शन देगी।
शाबाश, बधाई, प्यार प्रतिभा इतना सुंदर उपन्यास लिखने के लिए! 🥰
(सुरेखा जी बिट्स पिलानी की प्रोफेसर रही हैं। सेवानिवृत्ति के बाद सामाजिक कार्यों से जुड़ी हैं।)
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