Friday, April 5, 2024

सब ठीक ही तो है


न जाने किस से भाग रही हूँ. न जाने कहाँ जाने को व्याकुल हूँ. हंसने की कोशिश में न जाने क्यों आँखें छलक पड़ती हैं. बात करना चाहती हूँ लेकिन चुप हो जाती हूँ. मुश्किलें किसके जीवन में नहीं भला ये जानते हुए ख़ुद को खुशक़िस्मत महसूस करती हूँ फिर भी हवा का कोई झोंका गले से लगाकर कहता है “तुम रो क्यों नहीं लेती पगली” और मैं उसका मुँह ताकती हूँ कि मैं तो ठीक हूँ न. “ठीक होने में उदास होना, रो लेना शामिल नहीं ये किसने कहा” हवा के झोंके ने सर सहलाते हुए कहा और मैं ख़ामोश हो गई. मैंने सोचा, सपने में बार-बार ट्रेन छूट जाती है, नींद के भीतर ढेर सारी जाग भरी रहती है और जाग में नींद का दखल जारी रहता है ये सब किस से कहूँ इसलिए कह देती हूँ सब ठीक है. लेकिन जिन्हें पता है उन्हें सच में सब पता ही है कि ठीक के भीतर कितना पानी है फिर भी…

4 comments:

हरीश कुमार said...

सुन्दर

Onkar said...

बहुत सुन्दर

ANHAD NAAD said...

वाहियात !

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

“ठीक होने में उदास होना, रो लेना शामिल नहीं ये किसने कहा” हवा के झोंके ने सर सहलाते हुए कहा और मैं ख़ामोश हो गई.

सुंदर...