Wednesday, April 24, 2024

कसौली की खुशबू ने थाम लिया था...


कसौली के उस छोटे से चर्च में बैठकर जैसे ही आँखें मूँदीं, एक रुकी हुई लंबी सिसकी का एक सिरा खुल गया था। आँखें बंद करने से डरती हूँ इन दिनों कि आँखें बंद होते ही न जाने क्या-क्या नज़र आने लगता है। वो सब जो बीत चुका है फिर-फिर सामने उतराने लगता है। जैसे कोई सिनेमा की रील चल पड़ी हो। लेकिन कसौली के इस चर्च में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बस बंद आँखों को खोलने का जी नहीं किया, पलकों से बहती लकीरों को समेटने की इच्छा नहीं हुई।

कसौली का वह छोटा सा चर्च किसी पुरानी फिल्म के किसी दृश्य जैसा लग रहा था।कुछ ही लोग थे वहाँ। ज़्यादातर युवा। उनकी मुस्कुराहटें एक-दूसरे को इस कदर थामे हुए थीं, जैसे नेक लोगों ने थामा हुआ दुनिया को। वो मोमबत्तियाँ जला रहे थे, एक-दूसरे की आँखों में झांक रहे थे, ब्लश कर रहे थे। जरूर वो अपने ही किसी रूमानी ख़्वाब में रहे होंगे। चर्च का उदास माहौल इन युवा जोड़ों की उपस्थिती से एकदम रूमानी हो उठा था। उन्होंने एक लम्हे को भी एक-दूसरे का थाम नहीं छोड़ा था। मैं कुछ देर चर्च की सामने वाली बेंच पर बैठी और सामने लगी ईसा  की मूरत को देखती रही।

इस दुनिया को सुंदर बनाने के लिए कितनी कम मेहनत करनी होती है। बस ये जैसी है, उसे वैसी ही बने ही तो रहने देना है। इतना ही तो। लेकिन दुनियादार लोगों ने ठीकरा उठाया और सुंदर सी दुनिया की काँट-छाँट शुरू कर दी। भीतर कोई रोशनी उग रही थी बाहर सूरज ढल रहा था।

ढलते सूरज की तस्वीर लेते हुए मुझे मानस की याद आई। जाने किस शहर में होगा। घुमक्कड़ ही तो है वो। सोचा उसे बताऊँ कि कसौली मे हूँ। खुश होगा। महीनों, कभी-कभी सालों भी बात न होने के बावजूद मानस हमेशा करीब महसूस होता है। शायद इसलिए कि मैं सोचूँ पत्ती तो वो जंगल की बात करे ऐसा रिश्ता है हमारा।

लेकिन मैंने फोन नहीं किया। इस न करने में इतना कुछ गुंथा हुआ है। कितना कुछ बचा लेना है। बात करो तो कितना सारा बोलना पड़ता है।

खुद के लिए एक क्रॉस खरीदा गले में पहनने को और बाहर आकर चर्च की सीढ़ियों पर बैठकर जाते हुए सूरज को देखने लगी। आसपास कुछ लोग थे लेकिन वो शांति को भंग नहीं कर रहे थे।

घर से निकलने से पहले कितने ही ऊहापोह थे, कितनी आनाकानियां। इस पल में वो सब औंधी पढ़ी थीं। मैंने अपनी कलाई को थामा और मुस्कुरा दी।

वहाँ आसपास के लोगों को देखकर सोचने लगी इनके भीतर क्या चल रहा होगा। इन मुस्कुराते चेहरों के पीछे क्या पता कोई उदास हो। क्या मेरी मुस्कुराहटों के भीतर कोई उतर पाया होगा, रंगीन, खूबसूरत तस्वीरों, मुस्कुराहटों और गुनगुनाहटों से जब मैं खुद को ही भरमा रही हूँ तो किसी और का क्या ही कहना।

हम अपने निज में किस कदर कैद हैं...पिछले दिनों यह बात और ज्यादा समझ आई। पहले भी गाज़ा की तस्वीरें देखकर उदास होती थी, किसानों की फसल बर्बाद होने के दर्द को समझती थी, जब कभी किसी भी वजह से किसी के घर टूटने की तस्वीरें देखती थी फफक उठती थी कि बचपन में ही अपना घर टूटते देखना शायद इसका कारण हो। किसान परिवार से ताल्लुक रखना शायद इसका कारण हो कि हर मौसम की बरसात से खुश नहीं होता मन, फसल का खयाल आता है सबसे पहले। लेकिन पिछले दिनों यह सब महसूस होना अपनी सघनता के साथ और करीब आया।

हर रात मेरी आँखों के आगे बेघर हुए लोग, टूटते घर, बिखरते लोग, उदास चेहरे तैरते। अपनी उदासी बौनी लगती इन सबके आगे। 'घर' शब्द को नए ढंग से समझना शुरू किया है फिर से और पाया है कि कसौली के उस छोटे से कमरे में जहां चिड़िया फुदककर बेधड़क कमरे में आ जाया करती थी, कितना सुंदर घर था वो। 

वो हाथ जो मेरे कांधे पर था जिसकी छुअन में हौसला था, वो माथे पर रखा गया चुंबन जिसने कहा था, 'प्यार है' वो आँखें जिन्होंने अपनेपन के कितने ही अर्थ खोले वो सब घर हैं। अलग-अलग शहर में रहने वाले दोस्त याद आए, नहीं घर याद आए।


ओवरथिंकिंग के दलदल में घुसी ही थी कि देवदार मुस्कुराए, हाथ पकड़कर उन्होंने उठाया और पूछा, 'जलेबी खाओगी'। मैं कसौली के उस छोटे से बाजार में जलेबी की तलाश में निकल पड़ी। अजब सी खुशबू थी यहाँ की जलेबी की मिठास में। शायद शहर की खुशबू होगी। 

जलेबी की मिठास लिए मैं इस शहर के हर कोने में घूमती रही, भटकती रही। शांति के फूल मेरे बालों में कब टंके पता ही नहीं चला। अकेले यूं किसी शहर में घूमना कितना सुखद होता है इसे दर्ज नहीं किया जा सकता बस महसूस किया जा सकता है।

चलते-चलते एक कप चाय की ख्वाहिश हुई...रात करीब सरक आई थी...

जारी....

5 comments:

आलोक सिन्हा said...

बहुत सुन्दर

Anonymous said...

Sunder

Anita said...

कसौली की यात्रा के इस विवरण ने कितना कुछ दिखा दिया, आपकी लेखन शैली अद्भुत है, चाहे तो एक पल में सारी दुनिया की सैर करा दे और उस दुनिया की भी जो मन की गहराई में छिपी है

नूपुरं noopuram said...

बहुत सुंदर लिखा। कसौली की खुशबू से मिला भी दिया। धन्यवाद।

Usha kiran said...

बाहर के साथ अन्तर्यात्रा भी अनवरत जारी है…😊