Monday, April 22, 2024

हाँ, हम फिर तैयार हैं

पुराने घर की अंतिम मुसकुराती हुई तस्वीर 

आग का क्या है पल दो पल में लगती है
बुझते-बुझते एक जमाना लगता है....

जाने कितनी बार सुनी यह गज़ल इन दिनों ज़िंदगी का सबक बनी हुई है। अब जब मन थोड़ा संभल रहा है तो इस बारे में लिखना जरूरी लग रहा है। घटना जनवरी के किसी दिन की है। संक्षेप में इतना ही कि सुबह हमेशा की तरह सब ठीक-ठाक छोड़कर, पौधों को पानी देकर, बिस्तर और सोफ़ों के कवर की सलवटों को एकदम दुरुस्त करके, हर चीज़ को करीने से सहेज कर घर से दफ़तर के लिए निकली। यह हमेशा की आदत है। जबसे अकेले रहती हूँ यह आदत बढ़ गयी है। कि वापस लौटूँ तो घर मुस्कुराते हुए स्वागत करे और उसकी बाहों में गिरकर दिन भर की थकान गायब हो जाय। 

उस रोज सारे दिन कुछ ज्यादा ही मन लगाकर दफ्तर के सारे काम निपटाए, कुछ पेंडिंग काम भी। रोज के टाइम पर घर लौटी, दरवाजा खोला...और देखा कि मेरी दुनिया तबाह हो चुकी है। पूरा घर काले धुएँ के गुबार में घिरा हुआ, लपटों में घिरा हुआ। इस बारे में ज्यादा बात नहीं करूंगी क्योंकि बातें अंतहीन हैं, बस कि यह घटना शॉर्ट सर्किट से हुई। एक छोटी सी चिंगारी ने विकराल रूप ले लिया। और एकल जीवन के वासी इस प्रदेश यानि अपार्टमेंट में आसपास कोई था ही नहीं, सब काम पर थे तो किसी को कुछ पता न चला। फायर ब्रिगेड ने आकर आग बुझा दी, कुछ बेहद नेक काम करने वालों ने उस जले हुए मलबे के ढेर को फिर से घर बना दिया भले ही महीनों का समय लगा इसमें फिर भी। दोस्तों ने इस बीच इस कदर बाहों में कसकर रखा कि जले हुए की आंच मुझ तक पहुंचे ही न। किसने रहने का इंतजाम किया, किसने कपड़ों का किसने खाने का कुछ पता नहीं। कब किसने अकाउंट में कितने पैसे भेजे कोई हिसाब नहीं। हर पल इस दुखद घटना के दुख से बड़ा अपनेपन का घेरा संभाले हुए था। अङ्ग्रेज़ी का एक शब्द होता है Gratiude इस घटना ने मुझे इस शब्द में डुबो दिया है। सच है, वो दुख ही क्या जो और विनम्र न बनाए। मन हमेशा भीगा-भीगा सा रहता है कभी दुख से, कभी सुख से।  

तीन महीने बीत चुके हैं और अब भी यह सोचते ही झुरझुरी हो जाती है कि कैसे एक ही पल में न सर पर छत थी, न कपड़े, न खाना। यानि रोटी कपड़ा और मकान सब आग ने छीन लिया। लेकिन जानते हैं इन सबसे ज्यादा बड़ी चीज़ क्या छीनती हैं ऐसी घटनाएँ, हिम्मत, हौसला, आत्मविश्वास। मुझे याद है मैं पापा से फोन पर बात करते हुए रो पड़ी थी कि 'पापा मेरा घर नहीं जल रहा मेरी हिम्मत, मेरा हौसला जला जा रहा है।' 

कारीगरों ने घर बनाने का जिम्मा लिया, दोस्तों ने हौसला बचाने का। वो एक महीना, उसका एक-एक पल एक युद्ध था। खुद टूटी हुई थी लेकिन चाहती थी माँ उस जले हुए घर को न देखें, बेटू न देखे। कि कैसे सह पाएंगे उस हँसते मुस्कुराते हुए घर को एक जले हुए मलबे के ढेर में बदले। खैर, मेरे पास सबसे पहले पहुंची देवयानी। माँ और बच्चे के सामने तो मजबूती से खड़ी थी मैं देवयानी की बाहों ने रो लेने का ठिकाना दिया।   

खैर, इस घटना को साझा करने का कारण 'सहानुभूति', 'आह ये क्या हुआ', 'बेचारी', 'हिम्मत रखो', 'सब ठीक हो जाएगा' जैसे शब्दों से बचते हुए सिर्फ इतना साझा करना है कि घर को लेकर सावधानी रखनी जरूरी है। कोई भी स्विच या, कोई अपलायन्स जरा भी दिक्कत करे तो बिलकुल इगनोर न करें क्योंकि मेरे घर में यह हादसा बंद स्विच में हुआ। हो सके तो घर से निकलते समय एमसीबी गिराकर जाये तो ठीक होगा। लाइट के अलावा गैस सिलेन्डर हमेशा नीचे से बंद करें। पड़ोसी अगर कोई है तो उसके पास एक डुप्लीकेट चाबी जरूर दें। घर का इंश्योरेंस जरूर कराएं, सामान का इंश्योरेंस भी कराएं। लेकिन जीवन है कितनी ही सावधानी बरतें कुछ भी कभी भी हो सकता है की तैयारी के लिए दोस्ती कमाएं। 

अगर आसपास कोई इस स्थिति से गुजर रहा हो तो मदद करें लेकिन जताएँ नहीं, बात करने की बजाय पास जाकर बैठ जाएँ बस। इसी तरह की घटनाओं की कहानियाँ न सुनाएँ। 'अच्छा हुआ कि कोई था नहीं घर में' 'चलो कुछ तो बच गया', या 'उसका तो इससे भी बड़ा नुकसान हुआ था' जैसी बातें कुछ सहारा नहीं देतीं। और 'सामान ही तो जला है' वाक्य का अर्थ कौन नहीं जानता। ह्यूमन लॉस के आगे यह कुछ भी नहीं, फिर भी सामान से भी एक इमोशन जुड़ा होता ही है। 

काफी सारे लोग कई तरह के कयास लगा रहे थे कि हुआ क्या, और मैं इंतज़ार में थी कि जब मन सधेगा तब कुछ कहूँगी। 

इस घटना ने एक बार फिर भीतर एक बड़ा बदलाव किया है...मैं खुद धीरे-धीरे उस बदलाव को देख पा रही हूँ। दुखी नहीं हूँ, उदास भी नहीं हूँ...जीवन मुझे फिर से मुस्कुराकर देख रहा है...और मैं भी उसे। 

चायल ने घायल मन पर कुछ फाहे रखे हैं तो कुछ कहने का मन किया। बहुत लोगों के फोन न उठा सकी, बहुतों के मैसेज का जवाब नहीं दे सकी, लेकिन सबका साथ महसूस किया है यह दिल से कह रही हूँ जानती हूँ आप सब समझते हैं। 

3 comments:

Meena Bhardwaj said...

आपके हौसले को सलाम ।दुनिया में सच्ची मित्रता बड़ी पूँजी है ।आर्थिक और भावनात्मक क्षतिपूर्ति आप अपने आत्मबल से कर लेंगी और धीरे-धीरे काम की व्यस्तता आपकी उदासी भी कम कर देगी ।

Pammi singh'tripti' said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 24 अप्रैल 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

आलोक सिन्हा said...

बहुत सुन्दर