एक रोज जरा सी लापरवाही से
उम्मीद के जो बीज
हथेलियों से छिटक कर
बिखर गए थे
सोचा न था
कि वो इस कदर उग आएंगे
और ठीक उस वक़्त थामेंगे हाथ
जब मन काआसमान
डूबा होगा घनघोर कुहासे में
डब डब करती आँखों के आगे
वादियाँ हथेलियाँ बिछा देंगी
और समेट लेंगी आँखों में भरे मोती सारे
स्मृतियों में ठहर गए गम को
कोई पंछी अपनी चोंच से
कुतरेगा धीरे-धीरे
जब कोई सिहरन वजूद को घेरेगी
मौसम अपने दोशाले में लपेटकर
माथा चूम लेगा
उगता हुआ सूरज
सोचा न था
कि वो इस कदर उग आएंगे
और ठीक उस वक़्त थामेंगे हाथ
जब मन काआसमान
डूबा होगा घनघोर कुहासे में
डब डब करती आँखों के आगे
वादियाँ हथेलियाँ बिछा देंगी
और समेट लेंगी आँखों में भरे मोती सारे
स्मृतियों में ठहर गए गम को
कोई पंछी अपनी चोंच से
कुतरेगा धीरे-धीरे
जब कोई सिहरन वजूद को घेरेगी
मौसम अपने दोशाले में लपेटकर
माथा चूम लेगा
उगता हुआ सूरज
मुश्किल वक़्त को मुस्कुराकर देख रहा है...
1 comment:
बहुत सुंदर रचना
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