सामने वही पहाड़ी थी जिसे हम दोनों साथ बैठकर ताका करते थे. खामोशियाँ खिलती थीं और शब्द इन्हीं पहाड़ियों में फिसलपट्टी खेलने को निकल जाते थे. मुझे याद है वो तुम्हारी इच्छा भरी आँखें और नीले पंखों वाली चिड़िया की शरारत. तुम्हें पता है, तुम्हारी इच्छा के वो बीज इस कदर उग आये हैं कि धरती का कोना कोना फूलों की ओढ़नी पहनकर इतरा रहा है. उस पहाड़ी पर अब भी हमारी ख़ामोशी की आवाज़ गूंजती है. वो पहाड़ी लड़की जिसने पलटकर हमें देखा था और मुस्कुराई थी उसकी मुस्कान अब तक रास्तों में बिखरी हुई है.
बारिश बस ज़रा सी दूरी पर है, तुम आओ तो मिलकर हाथ बढ़ायें और बारिश को बुला लें…🌿
2 comments:
बहुत सुंदर।
सुंदर सृजन
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