बातें कितनी ही बड़ी-बड़ी कर लें लेकिन हकीकत यही है कि स्त्रियों को अब भी अपने स्पेस के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ रही है. सुकून से बैठकर एक कप चाय पीना भी जैसे किसी ख़्वाब सा हो. कई बरस पहले ऐसी ही एक कहानी लिखी थी जिसमें एक स्त्री घड़ी भर की फुर्सत के लिए, अपने स्पेस के लिए जूझ रही है और पितृसत्ता की महीन किरचें बीनते हुए लहूलुहान हो रही है. कहानी का शीर्षक था 'सच माइनस झूठ बराबर रत्ती भर जिन्दगी.' कहानी लोगों को पसंद आई. फिर इस पर फिल्म बनना शुरू हुई. फिर कोविड आ गया. पोस्ट प्रोड्क्शन का काम अटक गया. आखिर अब फिल्म बनकर तैयार हुई है और कल 15 मार्च को लखनऊ में इसकी स्क्रीनिंग हो रही है.
मेरी तो सिर्फ कहानी है, सारी मेहनत है फिल्म निर्माण यूनिट की. निर्माता, निर्देशक, अभिनय से जुड़े सभी लोगों को दिल से मेरी बधाई.
1 comment:
आपकी कहानी निश्चित ही अच्छी होगी, तभी तो फिल्म बनकर तैयार हुई है, इसके लिए आपको बहुत-बहुत हार्दिक बधाई !
https://www.youtube.com/watch?v=z34Xha_vQFE
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