जिन्होंने डराया
उन्होंने कहा, 'मुझसे डरो मत' और मुस्कुराये
जिन्होंने रचे प्रपंच
उन्होंने शदीद दुःख जताया
प्रपंच रचने वालों पर
जिन्होंने रची झूठ की इबारतें
उन्होंने कहा झूठ बोलने से ज्यादा जरूरी हैं
बहुत सारे काम
जिन्होंने शोर बोया
उन्होंने शन्ति की तलाश पर
लिखी कविता
जिन्होंने काटे वृक्ष
उन्होंने आंसू बहाए
हरियाली के कम होने पर
जिन्होंने आज़ादी पर लगाये ताले
उन्होंने दिए सुंदर भाषण आज़ादी पर
जिन्होंने हड़प ली दूसरों की रोटी
उन्होंने भूख को एजेंडा बनाया
और जीते चुनाव
और इस तरह जीवन में
सब 'ठीक ठाक' चलता रहा
सूरज रोज की तरह उगा पहाड़ी पर
और मुस्कुराया इस खेल तमाशे पर.
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