Sunday, March 5, 2023

झरती पत्तियों सी मैं


मौसम सुनहरा हो रहा है. सारे रास्ते सुनहरी पत्तियों से ढंके हुए हैं. काम करते-करते निगाह बाहर जाती है और मन शाखों से लहराकर उतरती पत्तियों के संग अटकने लगता है. भटकने लगता है. पत्तियों के गिरने में एक लय है. उनके धरती चूमने का अलग अंदाज है. मीठी सी आवाज है.

हवा चलती है तो जैसे कोई अल्हड़ युवती छन छन करती पायल पहनकर भागते हुए गुजरी हो.

रास्तों से गुजर रही होती हूँ कि हवा का एक बड़ा सा झोंका सुर्ख और पीले फूलों की पंखुड़ियों को उड़ाकर पूरे वजूद को ढंक देता है. मेरी पलकें भीग जाती हैं. जीवन कितना समृद्ध है, कितना खूबसूरत. प्रकृति के जितने करीब हम जाते हैं जीवन के रहस्य खुलते जाते हैं.

ये झरती हुई पत्तियां ये उगती हुई कोपलें इनसे बड़ा जीवन दर्शन क्या है भला. हर यात्रा का एक विराम होता है. उस विराम को कैसे और कितना सुंदर बना पाते हैं बस इतना ही तो रहस्य जानना है. और यह रहस्य हमारी हथेलियों पर रखा होता है हम देख नहीं पाते.

मैं पीले पत्तों को अपना पीला मन सौंपती हूँ. वे मुझे नयी उगती कोंपलों की बाबत बताते हैं.

मैं जीवन से कहना चाहती हूँ कि मुझे पीले पत्तों से और उगती कोंपलों से एक जैसा प्यार है. न कम, न ज्यादा.
वो जो झर रही हैं पत्तियां वो मैं हूँ, वो जो उग रही हैं कोपलें वो मेरे ख्वाब हैं...

1 comment:

Onkar said...

बहुत सुंदर