प्रतिभा भारद्वाज-
अगर पत्रों के समय पर ध्यान दें तो पत्र ऐसे समय के हैं जिस समय लोग सिर्फ़ अपने बारे में सोच रहे थे। उस समय के ये पत्र भावुक कर देते हैं। मन में बार-बार यही आता है कि इतनी गहराई से भी इस समय को किसी ने जिया होगा, सोचा होगा उन लोगों के बारे में जो सिर्फ़ खाने के लिए परेशान होंगे।
ये पत्र सोचने पर मजबूर करते हैं कि जिस दौर को हम भूल रहे हैं। 'जमा कर रही हूँ स्मृतियाँ' इस पत्र को मैंने कई बार पढ़ा और उस समय को याद किया। 'वो जमा कर रहे हैं आटा,दाल, चावल,मैं जमा कर रही हूँ स्मृतियाँ'। इस पुस्तक का पहला पत्र जो आपके मन को छू जाता है और आगे पढ़ने की जिज्ञासा भी जगाता है 'मैंने मृत्यु को छुआ है’इस पत्र को पढ़ते समय मन में बहुत सारे सवाल रह जाते हैं कि ऐसे कितने लोग होते होंगे जो इस तरह अपने भावों को लिख पाते होंगे क्या किसी ना किसी रूप में हर इंसान इन समस्याओं से गुजरता होगा। पुस्तक के सभी पत्र को पढ़ते हुए महसूस होता है कि ये पत्र लिखे नहीं गए जिए गये हैं। अपने आस-पास की घटनाओं और अपने जीवन के अनुभवों को बड़े ही आत्मीयता से लिखे गये हैं जिस कारण इन पत्रों से बड़ा जुड़ाव महसूस होता है।
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