Wednesday, April 20, 2022

तुम तो प्यार हो...



समय का पंछी उदासी को कुतरने की कोशिश में लगा हुआ था. उदास आँखों में दुनिया जहाँ की नदियाँ लिए भटकती देह को बस एक हौसले ने थाम रखा था कि कोई है जो आयेगा, चुपचाप बैठेगा एकदम करीब. जिसके काँधे पर सर रख के बरस लेंगी कुछ बदलियाँ और साँसों को तनिक सुख मिलेगा. बस तिनका भर उम्मीद हो तो जीवन आसान होने लगता है. और फिर हुआ यूँ कि एक रोज शहर भोपाल चला आया शहर देहरादून से मिलने. भोपाल की झील का देहरादून की पहाड़ियों, नदियों और रास्तों से मुलाकात का मौसम आया. देहरादून यूँ ही बौराया हुआ था. आम और लीची के कच्चे फलों की खुशबू पूरी फिजां में इस कदर बिखरी हुई थी कि कोई कमजर्फ ही होगा जो इस खुशबू से बावरा न हो उठे. इस खुशबू में जब भोपाल के रास्तों की, झील की वहां के दोस्तों की खुशबू शामिल हुई तो देहरादून के मिजाज़ में जरा गुरूर की रंगत भी घुल गयी.

श्रुति कुशवाहा जिसका नाम है वो मेरे लिए भोपाल शहर है पूरा. मेरे लिए भोपाल का अर्थ श्रुति ही है. मैं यूँ भी शहरों को वहां रहने वाले लोगों के नाम से जानना पसंद करती हूँ. ये लड़की मोहब्बत में पगी हुई है. कबसे कहा था इसने कि जब आप बेटू को छोड़कर आएँगी न तब उदास होंगी लेकिन मैं होने नहीं दूँगी और मैं आ जाऊंगी.

और वो आ गयी है. पूरा शहर, घर का कोना-कोना उसकी ख़ुशबू में नहाया हुआ है. उसका होना भर उदासियों को दूर करने को काफी है. कहाँ कुछ कहना सुनना होता है, बस होने की तो जरूरत है. ऐसा सम लगा है इस मुलाकात में कि नेह से डबडब करती रहती हैं आखें. ज़िन्दगी क्या है सिवाय मोहब्बत के. दोस्त जब मोहब्बत की बारिशें लेकर आयें और आपको तर-ब-तर कर दें तो कहने सुनने को क्या रह जाता है.

मुझे लगता है कोई परेशान हो आसपास तो उसे कुछ कहना नहीं चाहिए, उसकी हथेलियों को थामकर घंटों बैठे रहना चाहिए. श्रुति यह जानती है. हम नदियों में पैर डाले नीले आसमान से झरती खुशबू में डूबे रहते हैं. मेरे काँधे पर उसका सर होता है और मेरी हथेलियों में उसकी हथेलियाँ. लगता है दुनिया सिमटकर इन हथेलियों में आ गयी है. शहर मुस्कुरा रहा है. मेरी आँखें नम हैं. देवयानी कहती है, 'तुम्हारा कुछ समझ नहीं आता, खुश होती हो तो भी रोती हो, दुखी होती हो तो भी.' ज्योति कहती है, 'तुम्हारा ऐसा होना ही नॉर्मल होना है.' संज्ञा कहती है, 'बेटू की चिंता छोड़ दो उसकी मासियाँ हैं यहाँ तुम बस खुद को संभालो.' विभावरी कहती है, 'आपको अब नए सिरे से ज़िन्दगी को जीना शुरू करना चाहिए.' सब दोस्त बस एक पुकार की दूरी पर हैं. सबने सब संभाल रखा है. मैं तो एकदम आज़ाद हूँ. डबडबाती आँखों में प्रेम ही प्रेम है. आसमान से जैसे कोई ख़्वाब बरस रहा है...

श्रुति तुम हो तो जीवन कितना सुंदर लगने लगा है यार.

7 comments:

Shruty Dubey said...

और मैं रो रही हूं। खुशी वाले आँसू.. आपकी मोहब्बत से तरबतर हूँ। मेरा होना बस इतना ही तो है जितना आपका महसुसना। आप प्यार हैं, मैं इस प्यार को जी रही हूँ।

Ravindra Singh Yadav said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 21 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21-04-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4407 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
धन्यवाद
दिलबाग

अनीता सैनी said...

पंछी मन की बहुत ही सुंदर उड़ान।
सराहनीय सृजन।
सादर

Anhad Naad said...

खामोश सा अफ़साना , पानी से लिखा जाना !

Onkar said...

सुंदर सृजन।

Payal Patel said...

Nice Sir .... Very Good Content . Thanks For Share It .

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