जब भी डाक्टर वरयाम सिंह के बारे में सोचती हूँ तो मन एकदम से खुश हो जाता है. उनका जिक्र भर सुख और आत्मविश्वास से भर देता है. खुद पर भरोसा करना उन्होंने ही सिखाया. सोचती हूँ तो लगता है उन पर एक पूरी किताब लिख सकती हूँ. और जब लिखने बैठती हूँ तो सिर्फ 'सुकून' लिख पाती हूँ. इस कम लिख पाने में आत्मीयता का विशाल समन्दर है जो मुझे उनसे मिला है. आस्थावादी होती तो कहती भाग्य. लेकिन अभी कहती हूँ भाग यानी मेरा हिस्सा. उनके होने में जो मेरा हिस्सा है उसमें कितने खूबसूरत किस्से हैं.
आज जब साहित्य की तरफ कोई रेस सी लगी नजर आती है. कोई होड़. एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ ही नहीं एक-दूसरे की टांग फंसाकर गिराकर आगे निकलने की होड़ ऐसे में डाक्टर वरयाम सिंह की मुस्कुराहट के संग बैठ जाती हूँ. देखती हूँ सारे खेल तमाशे.
मारीना पर काम करने के दौरान मैं सिर्फ मारीना तक नहीं पहुंची, उससे पहले पहुंची एक ऐसे व्यक्तित्व के पास जो ज्ञान से, प्रतिभा से, ओहदे से लबरेज थे. लेकिन आप अगर उनसे मिले हैं तो उन्हें याद करने पर पहली बात जो याद आती है वो है उनकी सादगी और उनसे मिला अपनापन.
फूलों और फलों से भरी डाल किस तरह झुकती जाती है उसका व्यक्तित्व से मिलान करना हो तो वरयाम जी याद आते हैं. कितना आसान है उनसे मिलना, बातें करना. उनसे तोहफे में ढेर सारी किताबें लेना. हर मौके बे मौके फोन पर बतिया लेना. उनकी उंगली थाम रूस की गलियों में भटकते फिरना. कितना सुखद है अपनी शरारतों पर उनसे डांट खाना.
फूलों और फलों से भरी डाल किस तरह झुकती जाती है उसका व्यक्तित्व से मिलान करना हो तो वरयाम जी याद आते हैं. कितना आसान है उनसे मिलना, बातें करना. उनसे तोहफे में ढेर सारी किताबें लेना. हर मौके बे मौके फोन पर बतिया लेना. उनकी उंगली थाम रूस की गलियों में भटकते फिरना. कितना सुखद है अपनी शरारतों पर उनसे डांट खाना.
सच में, उनके साथ मैंने खूब सारा समय जिया है. पलाश खिलने के मौसम में लगभग हर बरस दिल्ली में साहित्य अकादमी के प्रांगण में मेरा उनसे मिलना होता. मारीना धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी और मैं उनसे मिलते ही छोटी हो जाती थी. उनके पास बैठते ही लगता अब सब ठीक है. मैं अपनी तमाम गलतियों को उनके साथ बेहिचक बाँट लेती. वो एक बात को कई बार बताने पर भी कभी खीझते नहीं.
किताबें पढ़कर ही सब जाना नहीं जाता लोगों से मिलकर बहुत कुछ सीखा जाता है. वरयाम जी एक पूरा स्कूल हैं यह समझने का कि पढ़ने-लिखने से अहंकार नहीं नम्रता आती है, सहजता आती है जो पल भर में किसी अनजान को भी अपना बना लेती है. वो हिमाचल में रहते हैं. उनके गाँव बंजार का मौसम उनके जैसा ही है, प्यारा सा. आड़ू, नाशपाती, पुलम के फूलों और फलों वाले इस गाँव ने फूलों की घाटी में बदलते हुए खिलखिलाना, निश्छल प्यार लुटाना जरूर वरयाम जी से ही सीखा होगा.
आज उनके जन्मदिन पर मैं हमेशा की तरह बहुत बहुत खुश हूँ. उनके होने में जो मेरा छोटा सा हिस्सा है उसे मैं हमेशा सहेजकर रखूंगी. आप खूब जियें, स्वस्थ रहें, आपसे बहुतों को बहुत कुछ सीखना है अभी.
आपका जन्मदिन मुबारक आपको भी, हमें भी
किताबें पढ़कर ही सब जाना नहीं जाता लोगों से मिलकर बहुत कुछ सीखा जाता है. वरयाम जी एक पूरा स्कूल हैं यह समझने का कि पढ़ने-लिखने से अहंकार नहीं नम्रता आती है, सहजता आती है जो पल भर में किसी अनजान को भी अपना बना लेती है. वो हिमाचल में रहते हैं. उनके गाँव बंजार का मौसम उनके जैसा ही है, प्यारा सा. आड़ू, नाशपाती, पुलम के फूलों और फलों वाले इस गाँव ने फूलों की घाटी में बदलते हुए खिलखिलाना, निश्छल प्यार लुटाना जरूर वरयाम जी से ही सीखा होगा.
आज उनके जन्मदिन पर मैं हमेशा की तरह बहुत बहुत खुश हूँ. उनके होने में जो मेरा छोटा सा हिस्सा है उसे मैं हमेशा सहेजकर रखूंगी. आप खूब जियें, स्वस्थ रहें, आपसे बहुतों को बहुत कुछ सीखना है अभी.
आपका जन्मदिन मुबारक आपको भी, हमें भी
2 comments:
डॉ. वरयाम सिंह जी जन्मदिन के अवसर पर उनके व्यक्तित्व को बड़े आत्मीय ढंग से सबके साथ बांटने हेतु धन्यवाद।
उन्हें जन्मदिन को बहुत-बहुत हार्दिक शुडॉ. वरयाम सिंह जी जन्मदिन के अवसर पर उनके व्यक्तित्व को बड़े आत्मीय ढंग से सबके साथ बांटने हेतु धन्यवाद।
उन्हें जन्मदिन को बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं भकामनाएं
डॉ. वरयाम सिंह जी को हार्दिक शुभकामनाएं
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