Sunday, April 25, 2021

दुःख


कोई घुटता हुआ दुःख सरक रहा है साँसों में
बाहर निकलने को व्याकुल है दर्द भरी चीख 
जिसकी कोई जगह नहीं अभी बाहर

फफक कर रोने की इच्छा को रौंद दिया है समय ने
कि आँखों में आंसुओं की नहीं
बचे हुओं को बचाने की कोशिशें हैं
भारी होती सांसों पर भारी है
खुद को सहेजने की जिम्मेदारी

खिड़की पर बैठी उदास चिड़िया पूछती है 
क्या सचमुच उम्मीद जैसा होता है कोई शब्द
क्या सचमुच समय के पास होता है 
हर घाव का मरहम है...?

2 comments:

Onkar said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति

शिवम कुमार पाण्डेय said...

हृदयस्पर्शी।