Tuesday, September 1, 2020

स्मृति का पानी

  ("Painting named Waiting," by Agnieszka Dabrowska )


शान्ति के समन्दर में
गुम जाते हैं तमाम शब्द
शब्दहीनता के आकाश में
उड़ान भरता है उजाले का पंछी

इच्छाओं की कोमल मछलियों का कोलाहल
मौन बन लहरों से टकराता है
अभिलाषाओं की लहरें उछालें मारते हुए
टूटती हैं प्रेमियों के पैरों से टकराकर

टप टप टप टपकता है जीवन
प्रेम का कटोरा लबालब भर देता है
कबूतरों के जोड़े मुस्कुरा कर पलटते हैं
और एक-दूसरे की गर्दन पर
टिकाते हैं सुनहली नीली गर्दन

स्मृतियों की बदलियाँ बरसती हैं
सफेद गुड़हल की पंखुड़ियों पर
मैं पंखुड़ियों से टपकती बूँदें
उतार लेती हूँ हथेलियों पर
देह उतर जाती है स्मृति के समन्दर में
समन्दर में उतर जाता है मीठा ज्वर

प्रेम के ज्वार से उपजा यह ज्वर
इंतजार के थर्मामीटर में मुस्कुराता है. 

7 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर।

ANHAD NAAD said...

जाते हुए पैरों से
इंतज़ार कहना
आते हुए देखना
कुछ ना कहना
बस इंतज़ार सहना
पुकारते रहना
चुप आवाज़ से !

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 02 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sudha Devrani said...

स्मृतियों की बदलियाँ बरसती हैं
सफेद गुड़हल की पंखुड़ियों पर
मैं पंखुड़ियों से टपकती बूँदें
उतार लेती हूँ हथेलियों पर
देह उतर जाती है स्मृति के समन्दर में
समन्दर में उतर जाता है मीठा ज्वर
वाह!!!
लाजवाब सृजन।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 3.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क

Rakesh said...

बहुत सुंदर

Onkar said...

बहुत बढ़िया