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Tuesday, September 1, 2020
मुस्कुरा दिए थे बुध्ध
कोई पूजन सामग्री नहीं
कोई मन्त्र नहीं, उपवास नहीं
कोई विधि नहीं
तिथि या पंचांग भी नहीं
अज़ान नहीं, अरदास नहीं
बस सफ़ेद फूलों से
भर उठी थी डाल
और मुस्कुरा दिए थे बुध्ध.
1 comment:
कविता रावत
said...
प्रकृति से बढ़कर कोई पूजा नहीं होती
बहुत सुन्दर
September 1, 2020 at 1:05 PM
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1 comment:
प्रकृति से बढ़कर कोई पूजा नहीं होती
बहुत सुन्दर
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