Friday, August 7, 2020

इल्तिजा


आओ सबसे पहले वार करो
मेरी रीढ़ पर
फिर निकाल लो मेरी आँखे 
कोई काम नहीं इन्हें 
बस कि ताकती रहती हैं 
तुम्हारी राह 

उँगलियाँ जो बेसाख्ता लिखती रहती हैं
तुम्हारा नाम
उन्हें अलग कर दो काटकर

पाँव जो न धूप देखते हैं न छाँव
बढ़ते रहते हैं तुम्हारी ही ओर
इन्हें भी अलग किया जाना चाहिए
शरीर से काटकर

कान इन्हें भी कुछ सुनाई नहीं देता 
सिवा तुम्हारे नाम के
इन्हें भी क्यों बख्शा जाना चाहिए

जिह्वा जो रटती रहती है
तुम्हारा ही नाम
उसे तो सबसे पहले 
अलग किया जाना चाहिए  

दिल जो धड़कता ही रहता है 
तुम्हारे नाम पर
उस पर करना सबसे अंत में वार
कि सांस की आखिरी बूँद तक
जानना चाहती हूँ
कितनी पीड़ा दे सकते हो तुम

ओ प्रेम छिन्न भिन्न करके 
जब हो जाना थक के चूर
तब सुस्ता लेना थोड़ा 
और मत बताना किसी को
कि तुम्हें मुझसे प्रेम था कभी
कि प्रेम के नाम पर पहले ही
कम नहीं हो रही है हिंसा

प्रेम के भीतर प्रेम को सांस लेने देना
उसे बख्श देना तुम
इतनी सी इल्तिजा है तुमसे. 

4 comments:

ANHAD NAAD said...

यह चीख बहुत गहरी है !

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 08 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Kamini Sinha said...

प्रेम के भीतर प्रेम को सांस लेने देना
उसे बख्श देना तुम
इतनी सी इल्तिजा है तुमसे.

बहुत सुंदर दिल को छू लेने वाले भाव,सादर नमन आपको

Onkar said...

भावभीनी अभिव्यक्ति