Saturday, August 15, 2020

सर चढ़कर बोले इश्क़

इश्क़ वो शय है जो मांगे मिले न और मिल जाए तो बिना बीच धार में ले जाकर डुबोये इसे चैन आये न. जबसे मोरपंख के पेड़ में गुलाब को चढ़ते देखा है यही महसूस हुआ कि यह इनके रिश्ते की शुरुआत है. फिर मोरपंख ने गुलाब को अपने भीतर पूरी तरह समेट लिया. एक नन्हा सा गुलाब खिला था जिस रोज खूब बारिश हो रही थी. मोरपंख और गुलाब दोनों इतरा इतरा कर झूम रहे थे. देखते देखते दोनों के अस्तित्व एक दूसरे में विलीन होते गए. लेकिन बिना खुद को खोये हुए. मोरपंख और हरा हुआ और लहराया, गुलाब फैलता गया उसके भीतर और खिलने लगा. यह जो सह अस्तित्व और खुद को खोये बिना एक दूसरे को अपनाना है न यह भी प्रकृति सिखा रही है...बस हम सीख नहीं रहे.

रिश्तों में अपनों को खुद से आज़ाद रखना बिना कोई गुमान किये. यह भी तो सीखना बाकी है.
आज़ादी मुबारक!

 

2 comments:

Onkar said...

बहुत सुंदर

ANHAD NAAD said...

मुबारक !