Thursday, September 26, 2019

ये दुनिया तुमसे सुंदर है


जब ये कक्षा 6 में थीं तब इनसे मुलाकात हुई थी. पहली बार. फिर इनसे दोस्ती हो गयी. फिर दोस्ती गाढ़ी होती गयी. अब ये कक्षा 8 में हैं. हम बातें करते हुए सीखते हैं एक-दूसरे से. मैं ज्यादा सीखती हूँ ऐसा महसूस करती हूँ. इन बच्चियों ने अपने जीवन की पहली चिठ्ठी लिखी मेरे संग. अपने सपनों के बारे में बताया मुझे. मेरे सपनों की पड़ताल की. मेरा हाथ थामकर अपने स्कूल के बारे में सब बताया. कोना-कोना घुमाया. आज जब स्कूल पहुंची तो थोड़ी नाराजगी से मिलीं ये सहेलियाँ. नाराजगी इसलिए कि काफी दिन बाद जाना हुआ था. लेकिन जैसे ही मैंने कान पकड़कर माफ़ी मांगी सब की सब हंस दीं. माफ़ कर दिया मुझे. और हाथ पकड़कर ले गयीं उस बगिया में जो इन बच्चों ने अपने हाथों से उगाई है, सजाई है. उन पेड़ों के पास ले गयीं जो इन्होने लगाये हैं. वादा किया जब इन आम के पेड़ों में फल आयेंगे तो मुझे भी मिलेंगे. बस कि मुझे वहां आना होगा.

तनिषा एथलीट है अभी स्टेट लेवल की खेल कूद प्रतियोगिताओं में उसने तीसरा स्थान प्राप्त किया है. अनीता पेंटर बनना चाहती है. नीति पुलिस में जाना चाहती है. उसकी आँखों में चमक है. वो चाहती है कि सारी लड़कियों को सुरक्षा दे सके अंशिका टीचर बनना चाहती है. हम बातें करते हुए जिन रास्तों से गुजर रहे थे बरसात ने उन सड़कों की हालत खराब कर रखी थी. हवाओं के पंखों पर सवार ये लड़कियां उड़ती फिर रही थीं. मैं संभल-संभल कर चल रही थी वो फलांगती फिर रही थीं. नीति ने कहा प्रधान जी आयेंगे तो सड़क बनेगी. क्या तुममें से कोई प्रधान नहीं  बनना नहीं चाहती? मैंने पूछा तो अंशिका ने कहा, राजनीति पसंद नहीं हमें. यानि प्रधान होना राजीनति में होना है यह पता है उन्हें. उनमें से एक बच्ची के पिता प्रधान हैं. हमने छवि राजावत के बारे में बात की. मैंने उन्हें छवि के बारे में बताया तो अंशिका ने कहा, अरे वाह हमने सोचा नहीं था ऐसा कि हम प्रधान भी बन सकती हैं. अब हम जरूर इस बारे में सोचेंगे.

लड़कियां बोलती कम थीं, हंसती ज्यादा थीं. इन लड़कियों ने शहर ने नहीं देखा है. इनकी दुनिया में मोबाईल नहीं है. फेसबुक नहीं है. वाट्स्प भी नहीं है. इनकी दुनिया में पेड़ हैं, नदियाँ हैं, पगडंडियाँ हैं, बारिशें हैं...खिलखिलाहटें हैं. मैं इनकी खिलखिलाहटों को पूरी दुनिया में बिखेर देना चाहती हूँ. मैं इनकी मुस्कुराहटों को नजर के काले टीके में सहेज देना चाहती हूँ. 

जब मैं वहां से चली, ये लड़कियां मेरे नाम की चिठ्ठी लिख रही थीं...मुझे उनकी लिखी चिठ्ठियों का इंतजार नहीं है. शायद मैं जानती हूँ उन चिठ्ठियों में क्या लिखा होगा. उनकी खिलखिलाहटों की कर्जदार हूँ. उनके लिए एक बेहतर दुनिया बनाने का कर्ज...